गायकी में झलकती थी प्रेम और जीवन की सच्चाई
विज्ञान भवन में रात के 10 बज चुके थे और बेगम अख्तर ने अपनी मशहूर गजल ‘मेरे हमनफस मेरे हमनवा मुझे दोस्त बनके दगा न दे...’ गाना शुरू किया। श्रोता सुरूर में आ चुके थे। सारा माहौल गजलमय हो चुका था। बेगम अख्तर गाते वक्त मंद-मंद मुस्कुरा भी रही थीं। इस गजल को उन्होंने करीब 40 मिनट तक गाया। इसके बाद उन्होंने कुछ देर तक विश्राम किया, लेकिन कोई अपनी सीट से हिलने को तैयार नहीं था। सब गजल की महफिल में डूबे हुए थे। इसके बाद उनके चाहने वाले गुजारिश करने लगे कि वो ‘ये न थी हमारी किस्मत कि विसाल-ए-यार होता, अगर और जीते रहते ...’ गजल अवश्य सुनाएं। उन्होंने श्रोताओं की मांग को सहर्ष माना।
उस महफिल का आखिरी नगीना थीं- ‘ये न थी हमारी किस्मत कि विसाल-ए-यार होता...।’ बेगम अख्तर और उनकी सोने सी आवाज के दीवाने तृप्त हो चुके थे। आखिरी गजल गाते हुए वो पूरी तरह छाई हुई थीं। इस गजल ने उनके शैदाइयों को पागल कर दिया था। महफिल रात 12 बजे के आसपास खत्म हुई। बेगम अख्तर की परफॉर्मेंस से संतुष्ट श्रोता जब विज्ञान भवन से बाहर निकले तो घुप अंधेरा था। सड़कें सुनसान। वो अलग और शांत दिल्ली थी। देर रात को बसें नहीं मिलती थीं, निजी गाड़ियां बहुत कम लोगों के पास होती थीं।
कई लोग पैदल मार्च करते हुए ही अपने घर चले गए। उस यादगार महफिल के मात्र दो हफ्ते बाद ही, 30 अक्टूबर 1974 को बेगम अख्तर का अचानक निधन हो गया। विज्ञान भवन की महफिल उनकी साबित हुई। जाहिर है, उनके लाखों चाहने वालों के लिए ये बड़ा झटका था। बेशक, बेगम अख्तर भारतीय संगीत की अमर हस्ती हैं। फैजाबाद में जन्मीं, उन्होंने बचपन से ही संगीत की दुनिया में कदम रखा। पारंपरिक ठुमरी, दादरा और गजल को अपनी आवाज से नई ऊंचाई दी। उनकी गायकी में दर्द, प्रेम और जीवन की गहराई झलकती है, जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती है।
उनकी शुरुआती जिंदगी संघर्षपूर्ण रही। मां की मृत्यु के बाद, उन्होंने पटना में उस्ताद इमदाद खान से संगीत सीखा। बेगम अख्तर ने महिलाओं के लिए संगीत जगत में नई राह खोली। 1945 में शादी के बाद भी, उन्होंने मंच नहीं छोड़ा। पद्म भूषण और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुईं। उनकी गायकी में सूफी प्रभाव और लोक संगीत की मिठास है, जो आज भी प्रासंगिक है। वो अब हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज आज भी जीवंत है। बेगम अख्तर न केवल गायिका थीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की धरोहर हैं। उनकी आवाज दर्द की भाषा बोलती है।
