लोक संस्कृति का वाहक पुष्कर मेला

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Published By Anjali Singh
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राजस्थान में अजमेर से लगभग 11 कि.मी. दूर हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पुष्कर है। यहां पर कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं। यहां पर विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है, जो इस मेले की शोभा को और बढ़ा देते हैं। मेलों के रंग राजस्थान में देखते ही बनते हैं। ये मेले मरुस्थल के गांवों के कठोर जीवन में एक नवीन उत्साह भर देते हैं। लोग रंग-बिरंगे परिधानों में सज-धजकर जगह-जगह पर नृत्य-गान आदि समारोहों में भाग लेते हैं। यहां पर काफी मात्रा में भीड़ देखने को मिलती है। लोग इस मेले को श्रद्धा, आस्था और विश्वास का प्रतीक मानते हैं।

पुष्कर मेला थार मरुस्थल का एक लोकप्रिय व रंगों से भरा मेला है। पुष्कर झील भारतवर्ष में पवित्रतम स्थानों में से एक है। प्राचीनकाल से लोग यहां पर प्रतिवर्ष कार्तिक मास में एकत्रित हो भगवान ब्रह्मा की पूजा उपासना करते हैं। पुष्कर मेले को खास माना जाता है, क्योंकि यह धार्मिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक महत्व का एक अनूठा संगम है। पुष्कर मेले की मुख्य विशेषताओं में दुनिया का सबसे बड़ा ऊंट और पशुधन मेला होना, जिसमें ऊंट, घोड़े, और अन्य मवेशियों की खरीद-बिक्री होती हैं।-रमेश सर्राफ धमोरा 

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ विभिन्न मनोरंजक गतिविधियों का मिश्रण शामिल है। इसमें सांस्कृतिक प्रदर्शन, पारंपरिक खेल जैसे कुश्ती और कबड्डी और ऊंट व घोड़ों के लिए सजगता प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। इसके अलावा मेले में हस्तशिल्प बाजार और पवित्र पुष्कर झील के किनारे धार्मिक अनुष्ठान भी होते हैं, जो इसे एक बहुआयामी उत्सव बनाते हैं। 

पुष्कर मेले की मुख्य विशेषताओं में दुनिया का सबसे बड़ा ऊंट और पशुधन मेला होना, जिसमें ऊंट, घोड़े और अन्य मवेशियों की खरीद-बिक्री होती है। धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ विभिन्न मनोरंजक गतिविधियों का मिश्रण शामिल है। इसमें सांस्कृतिक प्रदर्शन, पारंपरिक खेल जैसे कुश्ती और कबड्डी और ऊंट व घोड़ों के लिए सजगता प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। 

इस साल संपन्न हुए मेले में काफी संख्या में पशुपालक अपने पशु लेकर आए थे, जिनकी बड़ी संख्या में खरीद बिक्री भी हुई। इस बार पशु मेले में ऊंटों के बजाय घोड़ों की संख्या अधिक थी। ऊंटों की संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है। मेले में विदेशी पर्यटकों की भी संख्या पहले से दुगनी रही है। इस बार मेले में करीबन पांच हजार से अधिक विदेशी पर्यटक शामिल हुए थे। मेले के प्रारंभ में पुष्कर के 52 घाटों पर सवा लाख दीप जलाकर पूरे पुष्कर शहर को दीपों की रोशनी से जगमगा दिया गया था। 

पर्यटन विभाग की ओर से क्रिकेट मैच, साफा बांधों और तिलक कॉम्पिटीशन के साथ ही मूंछ प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया। क्रिकेट मैच देसी और विदेशी टीमों के बीच खेला गया, जिसमें भारत की जीत हुई वहीं मूंछ कॉम्पिटीशन में 80 इंच की मूंछों वाला एक रेलवे कर्मचारी भी आया, जिसने अपनी मूंछों से प्रतियोगिता में तीर-बाण चलाए। मूंछ कॉम्पिटीशन में कई प्रतिभागी लाखों की ज्वेलरी पहनकर आए। आखिरी में मूंछ कॉम्पिटिशन का आयोजन किया गया, जिसमें 33 प्रतिभागियों ने भाग लिया। राजस्थान और अन्य राज्यों से प्रतिभागी शामिल हुए। इनमें मारवाड़ और मेवाड़ के ज्यादा पार्टिसिपेंट्स शामिल हुए थे। इनमें बैंक और रेलवे नर्सिंग कर्मचारी, ऑफिसर पीटीआई टीचर सहित अन्य लोगों ने अपनी मूंछों का प्रदर्शन किया।

अजमेर के पुष्कर मेला मैदान में बीकानेर से एक पशुपालक 800 किलो का मुर्रा नस्ल का भैंसा लेकर रेतीले धोरों में पहुंचा। इसकी कीमत करीब 10 लाख रुपए है। केकड़ी के अश्वपालक राहुल जेतवाल अपने 17 सफेद रंग के घोड़े-घोड़ियों के साथ मेले में पहुंचे हैं, जिनमें सबसे खास है 5 साल का घोड़ा बादल। यह लगातार तीसरी बार पुष्कर मेले में आया है। राहुल ने बताया कि बादल ने अब तक 285 बच्चों का बाप बन चुका है। 

फिलहाल उसकी 120 घोड़ियां गर्भवती हैं। नुगरा नस्ल के इस घोड़े की ऊंचाई अब 68 इंच से भी अधिक हो चुकी है। वे इसे बेचने नहीं, बल्कि सिर्फ प्रदर्शन के लिए लाए हैं, लेकिन व्यापारी इसे खरीदने के लिए 11 करोड़ देने को तैयार हैं। इसके अलावा मेले में हस्तशिल्प बाजार और पवित्र पुष्कर झील के किनारे धार्मिक अनुष्ठान भी होते हैं, जो इसे एक बहुआयामी उत्सव बनाते हैं। 

महाभारत में भी है पुष्कर का उल्लेख 

महाभारत में पुष्कर राज के बारे में लिखा है कि तीनों लोकों में मृत्यु लोक महान है और मृत्यु लोक में देवताओं का सर्वाधिक प्रिय स्थान पुष्कर है। चारों धामों की यात्रा करके भी यदि कोई व्यक्ति पुष्कर सरोवर में डुबकी नहीं लगाता है, तो उसके सारे पुण्य निष्फल हो जाते हैं। यही कारण है कि तीर्थ यात्री चारों धामों की यात्रा के बाद पुष्कर की यात्रा जरूर करते हैं। तीर्थ राज पुष्कर को पृथ्वी का तीसरा नेत्र भी माना जाता है। पुष्कर नगरी में विश्व का एकमात्र ब्रह्मा मंदिर है, तो दूसरी तरफ दक्षिण स्थापत्य शैली पर आधारित रामानुज संप्रदाय का विशाल वैकुंठ मंदिर। इनके अलावा सावित्री मंदिर, वराह मंदिर के अलावा अन्य कई मंदिर हैं। 

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पास में ही एक छोटे से मंदिर में नारद जी की मूर्ति। एक मंदिर में हाथी पर बैठे कुबेर तथा नारद की मूर्तियां हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लिखित है कि अपने मानस पुत्र नारद द्वारा सृष्टिकर्म करने से इंकार किए जाने पर ब्रह्मा ने उन्हें शाप दे दिया कि तुमने मेरी आज्ञा की अवहेलना की है। अतः मेरे शाप से तुम्हारा ज्ञान नष्ट हो जाएगा और तुम गंधर्व योनि को प्राप्त करके कामिनियों के वशीभूत हो जाओगे। तब नारद ने भी दुःखी पिता ब्रह्मा को शाप दिया कि आपने बिना किसी कारण मुझे शाप दिया है। अतः मैं भी आपको शाप देता हूं कि तीन लोक में आपकी पूजा नहीं होगी और आपके मंत्र, श्लोक कवच आदि का लोप हो जाएगा। तभी से ब्रह्मा जी की पूजा नहीं होती है। मात्र पुष्कर क्षेत्र में ही वर्ष में एक बार उनकी पूजा-अर्चना होती है।

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कई आस्थावान लोग पुष्कर परिक्रमा भी करते हैं। सुबह और शाम के समय यहां आरती होती है। वह दृश्य अत्यंत मनोहारी होता है। इतनी विशेषताओं के कारण पुष्कर को तीर्थराज कहने के अलावा देश का पांचवां धाम भी कहा जाता है। पुष्कर सरोवर में कार्तिक पूर्णिमा पर पर्व स्नान का बड़ा महत्व माना गया है, क्योंकि कार्तिक पूर्णिमा पर ही ब्रह्मा जी का वैदिक यज्ञ संपन्न हुआ था। तब यहां संपूर्ण देवी-देवता एकत्र हुए थे। उस पावन अवसर पर पर्व स्नान की परंपरा सदियों से चली आ रही है। जिस प्रकार प्रयाग को तीर्थराज कहा जाता है, उसी प्रकार से इस तीर्थ को पुष्करराज कहा जाता है