संपादकीय : नाभिकीय त्रिकोण में हम 

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Published By Monis Khan
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ट्रंप ने यह धमाकेदार रहस्योद्घाटन कर सब को चौंकाना चाहा कि पाकिस्तान, चीन, रूस, उत्तर कोरिया गुप्त भूमिगत परमाणु परीक्षण कर रहे हैं। ट्रंप के अधिकांश बयानों की भांति उनका कथन सुर्खियां तो बटोर ले गया, लेकिन उनके कथ्य पर सत्य और तथ्य की मुहर नहीं लगी। उनके दावे की पुष्टि किसी विश्वसनीय और खुले स्रोत से नहीं हुई।

परमाणु सामग्री-शांति एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी इन गुप्त भूमिगत परीक्षणों के बारे में खामोश है, आरोपी पाकिस्तान ने किसी न्यूक्लियर एक्सप्लोसिव परीक्षण से इनकार किया तो चीन ने भी अपने ऊपर लगे आरोपों का खंडन कर दिया, हालांकि जैसे ट्रंप विश्वसनीय नहीं हैं, उसी तरह चीन और पाकिस्तान भी, सो ट्रंप की बात आधारहीन है तो पाकिस्तान और चीन का इनकार भी।

संभव है अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को यह पता हो पर पुष्टिकारक स्रोत के अभाव में वे सार्वजनिक दावा नहीं कर रही। मुमकिन है कि ट्रंप का बयान खुफिया सूत्रों के हवाले से हो। 
ट्रंप की बात पर इसलिए भी कान तो दिया जा सकता है कि वर्तमान वैश्विक परमाणु हथियार-और-प्रदर्शन परिदृश्य में इसके संकेत मिल रहे हैं, जैसे रूस का पोसीडोन अंडरवाटर न्यूक्लियर ड्रोन परीक्षण। ट्रंप ने कहा है कि यदि दूसरे देश परीक्षण कर रहे हैं, तो अमेरिका भी पीछे नहीं रहेगा, तो क्या अपने नाभिकीय परीक्षणों के लिए वे इस बयान तथा भभकी की आड़ ले रहे हैं। जो भी हो पारंपरिक युद्ध क्षमताओं के सीमित विकल्पों के बाद परमाणु हथियारों की प्रतिस्पर्धा एवं रणनीतिक निरोध-क्षमता को मजबूत करने, क्षेत्रीय दबदबा बढ़ाने के लिए यदि वास्तव में रूस-चीन-पाकिस्तान गुप्त परीक्षण कर रहे हैं, तो यह स्थिति भारत के लिए चिंतनीय है, क्योंकि वह चीन और पाकिस्तान जैसी परमाणु ताकतों के त्रिकोण में अवस्थित है।

भारत ने 1998 के बाद कोई परमाणु परीक्षण नहीं किया है,  इस नए परिदृश्य तथा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हमें बिना पुष्टि के अति प्रतिक्रियात्मक नहीं होना चाहिए। गुप्त परीक्षणों के प्रति सक्रिय मॉनिटरिंग व इंटेलिजेंस के जरिए अपने संज्ञान एवं निगरानी-संस्थान मजबूत करने के साथ अपने रक्षा-रणनीति का पुनराकलन करना होगा। प्रतिद्वंद्वी देश सक्रिय हैं, तो निष्क्रिय बने रहना रणनीतिक कमजोरी होगी। भारत को स्पष्ट करना चाहिए कि वह हथियार के ‘नो फर्स्ट यूज’ नीति का हामी है, पर तकनीकी रूप से सुरक्षा-आवश्यकतानुसार परमाणु प्रणालियों का परीक्षण तथा पड़ताल अवश्य करेगा। 

परीक्षण न हो तो भी मौजूदा हथियार प्रणालियों, कमांड-कंट्रोल संयंत्र इत्यादि को परीक्षण-सक्षम बनाना चाहिए। सीटीबीटी और एनपीटी जैसे समझौतों पर हस्ताक्षर न करने की स्थिति में भारत परमाणु परीक्षणों के लिए किसी की अनुमति का मुखापेक्षी नहीं है। उसे अमेरिका के दबाव में कतई नहीं आना चाहिए। इस बारे में सतर्क दृष्टिकोण अपनाते हुए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखनी चाहिए। मजबूत वैश्विक दबाव में आने के बजाए, भारत सामरिक संवाद एवं निरस्त्रीकरण की स्थापना पर खुद पहल ले। फिलहाल जहां ट्रंप के दावे अपुष्ट हैं, वहीं रणनीतिक रूप से यह संकेत भी हैं कि परमाणु-प्रतिस्पर्धा पुनर्जीवित हो रही है।