भोजन से हो जाएगा मधुमेह का इलाज.... लविवि वैज्ञानिकों ने खोजे कुकुर्बिट पौधों में मधुमेहरोधी तत्व, 31 % तक होगा कम
लखनऊ, अमृत विचार : आयुर्वेद के सिद्धांत “भोजनं महाभेषजम्” को लखनऊ विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर सिद्ध कर दिखाया है। विश्वविद्यालय के प्रो. आनंद एम. सक्सेना के मार्गदर्शन में युवा वैज्ञानिक विकास गौतम ने वनस्पति विज्ञान के कुकुर्बिटेसी परिवार के पांच पौधों की पहचान की है, जिनमें मधुमेहरोधी गुण पाए गए हैं। यह शोध स्प्रिंगर नेचर के क्यूरियस जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
शोध में चार जैविक मॉडल — उपवासित, भोजनयुक्त, ग्लूकोज़-लोडेड और मधुमेही चूहों — पर पौधों के अर्क का परीक्षण किया गया। इसके साथ ही डॉ. अशुतोष रंजन की एंडोक्रिनोलॉजी विशेषज्ञता से विकसित नई इन-वाइवो पद्धति का उपयोग भी किया गया।
अध्ययन में पाया गया कि मोमोर्डिका कैरेंटिया म्यूरिकाटा (जंगली करेला) ने सबसे प्रभावशाली परिणाम दिए। इसके अर्क से मधुमेही मॉडल में रक्त शर्करा का स्तर 31 प्रतिशत तक घट गया। वहीं खीरा और कद्दू में भी उल्लेखनीय ग्लूकोज़ नियंत्रण क्षमता देखी गई।
शोध में प्रो. सैयद शबीहे रज़ा बाक़री ने औषधीय और विश्लेषणात्मक पहलुओं पर कार्य किया, जबकि डॉ. कुमार गौरव बाजपेई ने जैवरासायनिक सत्यापन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह उपलब्धि भारत की पारंपरिक ज्ञान प्रणाली और आधुनिक विज्ञान के समन्वय का उदाहरण है, जो मधुमेह जैसी वैश्विक समस्या के लिए एक टिकाऊ, सुलभ और प्राकृतिक समाधान प्रस्तुत करती है।
इन पौधों में है मधुमेह-नाशी क्षमता
मोमोर्डिका कैरेंटिया म्यूरिकाटा (जंगली करेला)
ट्राइकोसैंथेस कुकुमेरिना (चिचिंडा)
लूफा अक्यूटेंगुला (तुरई)
कुकुमिस सटाइवस (खीरा)
कुकुर्बिटा पिपो (कद्दू)
“यह सिर्फ पौधों का अध्ययन नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की सब्ज़ियों को औषधि में बदलने का प्रयास है। हमारे निष्कर्ष दर्शाते हैं कि पारंपरिक खाद्य पदार्थ वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित होकर सस्ती और सुरक्षित चिकित्सा का रूप ले सकते हैं।”-विकास गौतम, शोधार्थी
