चन्द्राकार पर्वतों की नगरी चंदेरी
चन्द्राकार पर्वतों की गोद में विन्ध्य पर्वतश्रृंखला में आबाद मालवा का प्रवेश द्वार चंदेरी को अपनी शानदार विरासत के लिए यहां की कला एवं हस्तशिल्प को यूनेस्को की विश्व धरोहर की क्रियेटिव सिटी की सूची में नामित किया गया है। ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध चंदेरी पर प्रकृति ने खूब मेहरबानी की है। प्रकृति की अनमोल धरोहरों वनों और झरनों की खुशबू से लेकर कला और पुरासंपदा, ऐतिहासिक किले चंदेरी को खास बनाते है। चेदि राज्य की अतीत में राजधानी रही वर्तमान चंदेरी प्रतिहार वंश के प्रतापी राजा कीर्तिपाल की ऋणी है, जिनके शासनकाल में बूढ़ी चंदेरी के स्थान पर नई चंदेरी को दशमी/ग्यारहवीं शताब्दी में बसाया गया था। महाभारत काल से काल के किन-किन थपेड़े सहता रहा यह नगर अभी भी रहस्य ही है। कवि कालीदास ने मेघदूत के विदिशा जाने वाले मार्ग पर प्राचीन नगरी के संदर्भ में भले ही स्पष्ट संकेत नहीं दिए, पर इतिहास बताता है कि गुप्तवंश, प्रतिहारवंश, मुस्लिम आक्रांताओं, बुंदेला राजपूतों एवं सिधियाओं ने शासन किया। -सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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वर्तमान चंदेरी नगरी को प्रतिहारवंश महाराज कीर्तिपाल कुरुमदेव ने दसवीं और ग्यारहवीं शताब्दी के बीच बसाया था। नगरी का विस्तार 30 मील तक का था। मुगलकाल में इसकी जनसंख्या 1 लाख 75 हजार बताई गई है, जिसके प्रत्यक्ष प्रमाण आज भी उत्तर-पश्चिम में बूढ़ी चंदेरी, हंसारी, दक्षिण पूर्व में बेंहटी, बारी, तपाई, पंचमनगर, दक्षिण-पश्चिम में थूवोनजी, सीतामढ़ी, ख्यावदा, बीठला, भियांदात आदि है। इस समूचे क्षेत्र में पुरातत्व महत्व की विपुल सामग्री यत्र-तत्र बिखरी हुई है।
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राजवंशों के कार्यकाल में अनेकों उत्कृष्ट श्रेणी के निर्माण कार्य हुए हैं, जो स्थापत्य कला के अनूठे प्रमाण हैं। शिलालेखों से पता चला है कि यहां स्थापत्य कला गुप्तकाल की है। चंदेरी नगरी के अनेकों नयनाभिराम मंदिर, मस्जिद, मठ, सराय, मकबरे, बावड़ियां, महल एवं किला आदि उल्लेखनीय हैं। चंदेरी नगरी 7 परकोटों के बीच बसी हुई थी, जिनमें अनेक प्रवेश द्वार थे। मुख्य दरबाजों के नाम यथा- दिल्ली दरवाजा, ढोलिया दरवाजा, खिड़की दरवाजा, पखन दरवाजा, पिछारे दरवाजा, रेतबाग का दरवाजा, बिना नींव का दरवाजा, बादल महल का दरवाजा, जौहरी दरवाजा एवं कटी घाटी दरवाजा के नाम से आज भी प्रचलित हैं।
वीर भूमि बुंदेलखंड की स्थापत्य कला का बेजोड़ स्थल ‘कीर्ति दुर्ग’ इतिहास के उस कालखंड का चंदेरी मुस्लिम आक्रांताओं के रक्तपात की शिकार बनी। चंदेरी राज्य का मुख्य प्रवेश द्वार खूनी दरवाजा कहलाता है। यह द्वार राजा मेदनीराय की वीरगति का साक्षी है। 28 जनवरी सन् 1528 को बाबर ने पहाड़ों को काटकर हमला किया था। यह स्थल कटी घाटी के नाम से प्रसिद्ध है। यह युद्ध के संदर्भ में बाबर द्वारा लिखित पुस्तक “तुजक-ए-बाबरी” के अनुसार दिसंबर, 1527 में बाबर ने चंदेरी में प्रवेश का मार्ग उत्तर दिशा से चुना और अपनी सेना का शिविर बत्तीसी बावड़ी पर स्थापित कर जनवरी, 1528 में युद्ध के नगाड़े बजा दिए। बाबर ने चंदेरी के चारों ओर से घेर लिया।
राजपूतों ने दुर्ग बचाने के लिए भीषण प्रतिरोध किया, लेकिन विजय लुटेरे बाबर को मिली तो हजारों क्षत्राणी वीरांगनाओं ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए विक्रम संवत् 1584, माघ सदी 8, बुधवार को किले में ही एक तालाब के किनारे जौहर किया। इस जौहर में मेदनीराय की पत्नी मणिमाला तथा उनकी सहेली ने भी अपने आपको शामिल किया। यह जौहर अपने आप में तत्कालीन राजाओं के चरित्र को इंगित करता है। इस स्थल पर एक स्तंभ बना है।
इसके निर्माण में ग्वालियर राज्य ने सहयोग किया था। स्तंभ पर सुरुचिपूर्ण ढंग से जौहर के दृश्य के अतिरिक्त स्वर्ग में शिवपूजन का दृश्य अंकित है। समीप ही संगीत सम्राट ‘बैजू बावरा’ की समाधि एकांत में अपने अतीत की गाथा सुना रही है। इसी पहाड़ी पर किला कोठी है, जिसका संचालन लोक निर्माण विभाग के अधीन है। नौ खड़ा महल कभी चंदेरी राज्य का सबसे सुंदर महल था। आज खंड-खंड हो चुका है। स्मृति शेष पाषाण खंड अपने सुनहरे दिनों को ताजा किए है।
प्राचीन काल में चेदि राज्य पर राजा शिशुपाल का शासन था। इस राज्य के अवशेष मात्र ही शेष है। लोकश्रुति के अनुसार राजा शिशुपाल ने, जो भगवान कृष्ण से ईर्ष्या रखता था, अपने राज्य में प्रजा को मोर मुकुट के आकार युक्त जूते पहनवाए, जो यदाकदा ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी प्रचलित है। चंदेरी में वैसे तो अनेक तालाब हैं, लेकिन ‘परमेश्वर तालाब’ का विशेष महत्व है। इसके घाट पर बना लक्ष्मण मंदिर का प्रतिबिंब अपनी अनोखी आभा प्रस्तुत करता है।
दर्शनीय स्थल
चंदेरी का किला- ग्यारहवीं शताब्दी में कीर्ति पाल द्वारा निर्मित चार मील से अधिक लंबी चंदेरी की दीवार, चंदेरी के इतिहास की मूक साक्षी है। परकोटे के अंदर बुंदेलखंड स्थापत्य के नौखड़ा महल और हवा महल दर्शनीय है।
जागेश्वरी देवी मंदिरः- यह प्राचीन मंदिर पर्वत की एक खुली गुफा में स्थित है, इसकी मूर्ति स्वयंभू है। लोकश्रुति के अनुसार मां जागेश्वरी ने यहां के राजा को स्वप्न में कहा था कि मुझे नौ दिन नहीं देखा, तो मैं पूर्ण रूप में प्रकट हो सकती हूं। दर्शन की तीव्रता के कारण तीसरे दिन द्वार खोलने के कारण सिर्फ शीर्ष भाग ही मिला, जो मंदिर में स्थापित है। मंदिर के पास बना आकर्षित करता तालाब चंदेल कालीन कला का अनुपम उदाहरण है।
बूढ़ी चंदेरीः- मौजूदा चंदेरी से 22 कि.मी. की दूरी पर स्थित हैं। यहां 55 जैन मंदिरों के अवशेष मिलते है।
थूबोन जीः- चंदेरी से 28 किमी की दूरी पर स्थित यहां दिगंबर जैन समाज के 16 जैन मंदिर हैं। निकट ही थूबोन नाम का एक ग्राम है, जहां भारतीय पुरातत्व विभाग का मूर्ति संग्रहालय तथा इसके आसपास दसवीं शताब्दी के अनेक जैन मंदिर
उल्लेखनीय हैं।
बैंहटी मठः- चंदेरी से 18 किमी की दूरी पर दक्षिण-पूर्व दिशा में घने जंगलों के बीच स्थित यह मठ गुप्तकाल में तांत्रिकों की साधनास्थली रहा है। इसके 16 स्तंभों को पत्थर की बारीक कटाई से शेर, हाथी, मोर, घोड़े, हिरण, कमल के फूल एवं देवी देवताओं से सुसज्जित किया गया है।
देवी प्रतिमा- चंदेरी से 12 किमी दूर वेदी की एक विलक्षण प्रतिमा है, जो अत्यंत प्राचीन एवं मनमोहक है।
खंदारगिरि- यह स्थल चंदेरी से 2 किमी की दूरी पर दक्षिणांचल में है तथा यहां 13 वीं शताब्दी से लेकर 16 वीं शताब्दी तक की विशाल और भीमकाय शैल प्रतिमाएं बनी हुई हैं।
दिल्ली दरवाजाः- इस विशाल एवं कलात्मक द्वार का निर्माण दिलावर खां गौरी ने 1411 में निर्मित कराया था। इस महल के नीचे एक विशाल तालाब है, जहां हमेशा कमल के फूल खिले रहते हैं। यह तालाब बड़ा ही रमणीक लगता है। इसका निर्माण होशंगशाह गौरी ने 1433 ई. में कराया था।
कौशक महलः- चंदेरी नगर से 4 किमी. दूर फतेहाबाद गांव के पास मालवा के सुल्तान महमूद शाह प्रथम के द्वारा निर्मित ‘कौशल महल’ अपने अनूठी शैली के कारण मोहित करता है। चौकोर महल के चार प्रवेश द्वार हैं। यह विशाल महल वर्गाकार अफगान शैली में बना है तथा स्थापत्य कला का उकृष्ट नमूना है। इसका निर्माण महमूद खिलजी ने जौनपुर की जीत की खुशी में 1445 ई. में कराया था एवं इसका नाम कौशकेहफ्त मंजिल रखा था।
बत्तीस बाबड़ीः- चंदेरी से 2 किमी दूर उत्तर पश्चिमी दिशा में तत्कालीन गर्वनर शेरखां ने सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी के आदेशानुसार 1485 ई. में बत्तीस बावड़ी का निर्माण कराया था। इसमें पानी का स्तर हर घाट पर बराबर रहता है। यह बाबड़ी चंदेरी की 1200 बाड़ियों में विशेष स्थान रखती है।
जौहर स्मारकः- चंदेरी के दक्षिण में चन्द्रगिरि पर्वत के ऊपर, किले के समीप जौहर स्मारक है। 1528 ई. में जब मुगल बादशाह बाबर ने महाराजा मेदनी राय को पराजित कर यह प्रसिद्ध दुर्ग छीना, तो 1500 राजपूत वीरांगनाओं में अपने सतीत्व की रक्षा हेतु जीवित ही अपने को अग्नि में समर्पित कर जौहर व्रत निभाया था। यह स्मारक इस घटना की याद दिलाता है।
कैसे पहुंचे
वायु सेवा- ग्वालियर 259 किलोमीटर, भोपाल 258 किलोमीटर निकटवती हवाई अड्डे हैं।
रेल सेवाएं- दिल्ली, मुंबई, चेन्नई मुख्य रेल मार्ग पर निकटवर्ती रेलवे स्टेशन ललितपुर (36 किमी), झांसी (124 किमी), मुंगावली (38 किमी) और अशोक नगर (46 किमी)।
सड़क मार्ग- शिवपुरी, ग्वालियर, अशोकनगर, गुना इंदौर, झांसी, ललितपुर, टीकमगढ़, विदिशा, सांची, भोपाल के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है।
अनुकूल मौसमः- जुलाई से मार्च।
