जिंदगी का सफर... भारतीय सिनेमा की विरासत- वहीदा रहमान
वहीदा रहमान भारतीय सिनेमा की महत्वपूर्ण अभिनेत्री हैं, जिन्हें उनकी सुंदरता, गरिमा और अभिनय क्षमता के लिए जाना जाता है। वहीदा रहमान का जन्म 3 फरवरी 1938 को तमिलनाडु के चेंगलपट्टू में एक तमिल मुस्लिम परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही एक प्रशिक्षित भरतनाट्यम नर्तकी थीं। अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए, उन्होंने डॉक्टर बनने का अपना सपना छोड़ और फिल्मों में प्रवेश किया। उन्होंने सबसे पहले तेलुगु और तमिल फिल्मों में काम करना शुरू किया।
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उनकी प्रतिभा को हिंदी सिनेमा में फिल्म निर्माता गुरु दत्त ने पहचाना, जिन्होंने उन्हें अपनी फिल्म ‘सी.आई.डी.’ (1956) से हिंदी फिल्मों में लॉन्च किया। गुरु दत्त के साथ उनकी साझेदारी ने भारतीय सिनेमा को कई क्लासिक फिल्में दीं, जिनमें ‘प्यासा’ (1957), ‘कागज के फूल’ (1959) और ‘साहिब बीबी और गुलाम’ (1962) शामिल हैं।
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1960 के दशक के मध्य में वहीदा रहमान ने शीर्ष अभिनेत्री के रूप में अपनी जगह बनाई। उनकी सबसे यादगार भूमिकाओं में से एक ‘गाइड’ (1965) में ‘रोजी’ की थी, जिसने उन्हें व्यापक पहचान और पहला फिल्मफेयर पुरस्कार दिलाया। इसके बाद, उन्होंने ‘तीसरी कसम’ (1966), ‘नील कमल’ (1968) और ‘खामोशी’ (1969) जैसी कई सफल फिल्में दीं।
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1974 में अभिनेता शशि रेखी (कमलजीत) से शादी करने के बाद, उन्होंने अभिनय से ब्रेक ले लिया और बंगलुरु चली गईं। 2000 में अपने पति की मृत्यु के बाद, वह मुंबई लौट आईं और सहायक भूमिकाओं में वापसी की। उन्होंने ‘वाटर’ (2005), ‘रंग दे बसंती’ (2006) और ‘दिल्ली 6’ (2009) जैसी फिल्मों में काम किया।
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भारतीय सिनेमा में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा गया है। उन्हें 1972 में पद्मश्री और 2011 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। 2023 में, उन्हें भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। वहीदा रहमान आज भी भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक अनमोल विरासत बनी हुई हैं।
