संपादकीय: आतंकी साजिशों का साया
देश की सुरक्षा व्यवस्था को गहरी चेतावनी देने वाले दिल्ली के लाल किले के पास हुए विस्फोट ने यूपी के कई चिराग बुझा दिए। यह मात्र आकस्मिक घटना नहीं, बल्कि यह संकेत है कि भारत में आतंकवाद की जड़ें पुनः पनपने लगी हैं। पिछले कुछ महीनों में गुजरात, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से आतंकियों की गिरफ्तारियों तथा संदिग्ध गतिविधियों के जो सिलसिले सामने आए हैं, वे बताते हैं कि देश की आंतरिक सुरक्षा को लेकर खतरा बढ़ता जा रहा है।
शुरुआती जांच में मिली सामग्री, रासायनिक अवशेष और विस्फोटक तत्व यह संदेह मजबूत करते हैं कि देश में भारी मात्रा में आतंकी हरबे हथियार पहुंच चुके हैं। इसका मतलब है कि आतंकी संगठन देश के भीतर फिर से अपने नेटवर्क को सक्रिय करने में सफल हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश, विशेषकर उसके पश्चिमी और मध्य क्षेत्र, लंबे समय से आतंकी संगठनों के पसंदीदा हैं। राज्य की जनसंख्या, धार्मिक और राजनीतिक संवेदनशीलता तथा दिल्ली से निकटता इसे आतंकियों के लिए आसान टारगेट बनाती है।
खुफिया सूत्र बताते हैं कि कुछ शहर जैसे लखनऊ, मेरठ, वाराणसी और कानपुर आतंकी मॉड्यूल्स के निशाने पर हैं। गुजरात एटीएस द्वारा हाल ही में पकड़े गए आतंकियों और फरीदाबाद मॉड्यूल से मिले सुराग भी इस आशंका को बल देते हैं कि देशभर में विभिन्न छोटे-छोटे मॉड्यूल किसी साझा उद्देश्य के तहत काम कर रहे हैं। इस बात पर सरकारी एजेंसियों को गहरा शक है कि दिल्ली विस्फोट फिदायीन हमला हो सकता है या संभव है कि शृंखलाबद्ध आतंकी साजिश का हिस्सा। इस पर भी संदेह है कि कार्रवाई के डर से विस्फोटक की जगह बदलते समय दुर्घटनावश यह विस्फोट हुआ हो। फिदायीन हमले की आशंका, जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों पर संदेह और विदेशी खुफिया एजेंसियों की भूमिका के संकेतों के बावजूद, सरकार और पुलिस द्वारा इस विस्फोट को “आतंकी हमला” घोषित करने में झिझक यह दर्शाती है कि जांच एजेंसियां अभी निर्णायक सबूतों की प्रतीक्षा में हैं। परंतु यह भी सच है कि किसी भी देरी से आतंकी नेटवर्क को अपने निशान मिटाने का मौका मिल जाता है।
आतंकवाद केवल पारंपरिक हथियारों या विस्फोटकों तक सीमित नहीं रहा, रासायनिक तत्वों, साइबर हैकिंग और फर्जी डिजिटल पहचान के माध्यम से आतंकी अपनी उपस्थिति छिपा रहे हैं। गृह मंत्रालय को पारंपरिक खुफिया नेटवर्क के साथ साइबर निगरानी, सोशल मीडिया मॉनिटरिंग और अंतरराज्यीय समन्वय वाले “हाइब्रिड काउंटर-टेररिज्म स्ट्रैटेजी” की आवश्यकता है। सरकार ने पिछले दशक में आतंकवाद के खिलाफ सख्त नीतियां बनाईं, लेकिन अब चुनौती का स्वरूप बदल चुका है।
ऐसे में जरूरी है कि सुरक्षा एजेंसियां घटनाओं पर प्रतिक्रिया देने की बजाए खतरे का अनुमान लगाकर पहले ही कार्रवाई करें। यह विस्फोट महज एक हादसा नहीं, बल्कि यह आगाह है कि अगर हमने अपने सुरक्षा ढांचे को आधुनिक तकनीकी और रणनीतिक दृष्टि से मजबूत नहीं किया, तो आने वाले समय में ऐसे “संदिग्ध विस्फोट” एक भयावह वास्तविकता बन सकते हैं। सरकार को मौजूदा जांच के साथ ही नीति स्तर पर एक व्यापक आतंक-निरोधी रणनीति लागू करनी चाहिए ताकि किसी भी शहर में न तो आतंकी संगठन पनपे न ऐसी जानलेवा गतिविधियां हों
