संपादकीय : इसरो की छलांग
इसरो की अगले तीन वर्षों में अंतरिक्ष यान निर्माण क्षमता को तीन गुना करने की तैयारी मात्र तकनीकी विस्तार नहीं, भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की दीर्घकालिक रणनीति का संकेत भी है। साफ है कि इसरो मात्र प्रक्षेपण सेवा प्रदाता या वैज्ञानिक मिशनों तक सीमित नहीं रहना चाहता, वह वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में एक निर्णायक खिलाड़ी बनना चाहता है। वर्तमान में इसरो की क्षमता अवसंरचना और अल्प प्रक्षेपण अवसरों के चलते सीमित है।
एक साथ कई वैज्ञानिक और वाणिज्यिक मिशनों को संभालने में इससे दिक्कत होती है। क्षमता को तीन गुना करना वैज्ञानिक अभियानों की गति बढ़ाने के साथ वैश्विक बाजार के वाणिज्यिक अवसरों को भी भुनाने में मददगार होगा। यह भविष्य में इसरो को मिशनों के ओवरलैप के दबाव से मुक्त करेगा और निजी उद्योगों तथा नई अंतरिक्ष कंपनियों को भी बड़े पैमाने पर जोड़ेगा। वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी अभी लगभग दो प्रतिशत है, जिसे 2030 तक बढ़ाकर आठ प्रतिशत करने का लक्ष्य है।
क्षमता विस्तार, उद्योग साझेदारी, तेज प्रक्षेपण चक्र और सस्ते, लेकिन भरोसेमंद मिशनों से इसरो इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य तक पहुंच सकता है। भारत की कम लागत वाली तकनीक और बढ़ती विश्वसनीयता विदेशी ग्राहकों को खूब आकर्षित कर रही है। इसरो जिन कार्यक्रमों पर काम कर रहा है, वे अभूतपूर्व हैं-चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ का अध्ययन करने वाला जापान-भारत संयुक्त मिशन ‘लूपेक्स’, 2028 के लिए निर्धारित चंद्रयान-4, भारतीय उद्योग द्वारा निर्मित पहला पूरी तरह स्वदेशी पीएसएलवी और भविष्य के अंतरिक्ष स्टेशन के पहले मॉड्यूल की तैयारी। इनमें से हर एक परियोजना न केवल तकनीकी क्षमता बढ़ाने के साथ इसरो की वैश्विक विश्वसनीयता को नई ऊंचाई देगी।
भारतीय निजी उद्योग निर्मित पीएसएलवी अंतरिक्ष क्षेत्र में ठीक उसी तरह भागीदार बनेगा-जैसे अमेरिका में स्पेसएक्स और अन्य निजी कंपनियां नासा के लिए सहायक हैं। इससे न केवल प्रक्षेपण क्षमता बढ़ेगी, बल्कि एक विशाल घरेलू अंतरिक्ष पारिस्थितिकी भी बनेगी। चूंकि इसरो अब अधिकांश, परियोजनाओं को अलग-अलग समर्पित केंद्रों और उद्योग भागीदारी के साथ आगे बढ़ा रहा है इसलिए उसके चलते दूसरे अभियानों में विलंब की आशंका कम है। हालांकि मानवीय उड़ान मिशन बेहद जटिल होते हैं और सुरक्षा के मानक सर्वोपरि रहते हैं, इसलिए समय में नैसर्गिक बदलाव असामान्य नहीं होगा।
भारत का प्रस्तावित अंतरिक्ष स्टेशन, जिसके पांच मॉड्यूल 2035 तक कक्षा में स्थापित होने की योजना है, राष्ट्रीय अंतरिक्ष शक्ति के विकास का निर्णायक कदम होगा। पहला मॉड्यूल 2028 तक बन पाने की संभावना मजबूत है और यह भारत को “लो अर्थ ऑर्बिट रिसर्च पॉवर” के रूप में वैश्विक क्लब में शामिल करेगा। इन सभी उपलब्धियों और लक्ष्यों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि इसरो का भविष्य उज्ज्वल है। यह केवल वैज्ञानिक उपलब्धियों का विस्तार नहीं, यह भारत की आत्मनिर्भरता, प्रौद्योगिकीय नेतृत्व और वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी बढ़ाने की लंबी छलांग है। इससे देश को वैज्ञानिक प्रतिष्ठा, आर्थिक अवसर, वैश्विक साझेदारियां और युवाओं के लिए नई शोध-संभावनाएं प्राप्त होंगी। इसरो की नई छलांग उसे वैश्विक अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा में बहुत आगे ले जाएगा। भारत अब अंतरिक्ष में पहुंचने की ही नहीं, बल्कि वहां अपनी ऊंची जगह बनाने की तैयारी कर चुका है।
