संपादकीय :अंतरिक्षीय अपेक्षाएं
प्रधानमंत्री द्वारा विक्रम–1 ऑर्बिटल रॉकेट का अनावरण भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक निर्णायक मोड़ है। यह पहला अवसर है, जब किसी भारतीय निजी स्टार्टअप द्वारा पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से निर्मित ऑर्बिटल रॉकेट को राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत किया गया। साफ है कि देश अपने को सरकारी एजेंसी आधारित अंतरिक्ष शक्ति के रूप में सुस्थापित करने के बाद एक बहु-आयामी, नवोन्मेष–संचालित अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के रूप में भी उभर रहा है। संचार, अर्थ ऑब्जर्वेशन, रक्षा, निगरानी, नेविगेशन, आपदा प्रबंधन, कृषि और ऊर्जा क्षेत्रों में उपग्रहों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाने से वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में छोटे, सूक्ष्म और नैनो उपग्रहों की मांग और उनकी सेवाओं की मांग तेजी से बढ़ रही है। आने वाले दशक में, हजारों नए उपग्रह लॉन्च होंगे।
छोटे और मध्यम श्रेणी के उपग्रह प्रक्षेपणों के लिए निजी कंपनियों के ऑर्बिटल लॉन्चर इसरो का भार काफी कम कर सकते हैं। यह क्षमता न केवल मिशनों की गति बढ़ाती है, बल्कि इसरो को वैज्ञानिक अनुसंधान पर अधिक ध्यान देने का अवसर भी प्रदान करती है। देश में निजी क्षेत्र को अंतरिक्ष गतिविधियों में प्रवेश देने का निर्णय इसरो के लिए भी अत्यंत लाभकारी सिद्ध हुआ है। 2020 में अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधारों के बाद सरकार ने इन स्पेस की स्थापना की, निजी कंपनियों के लिए परीक्षण सुविधाएं खोलीं और स्टार्टअप को तकनीकी मार्गदर्शन उपलब्ध कराया। इसके परिणामस्वरूप आज सैकड़ों छोटी-बड़ी भारतीय निजी कंपनियां, उपग्रह निर्माण, प्रणोदन प्रणाली, ग्राउंड–स्टेशन नेटवर्किंग, मिशन प्लानिंग, डेटा एनालिटिक्स तथा लॉन्च सेवाओं तक के अनेक चरणों पर इसरो के साथ मिल कर कार्य कर रही हैं। इसी नयी खुली व्यवस्था का प्रभाव यह है कि आज भारतीय निजी रॉकेट कंपनियां विदेशी उपग्रहों को भी प्रक्षेपित कर रही हैं, विदेशी विश्वविद्यालयों तथा अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों के तकनीकी परीक्षण कर रही हैं और वैश्विक बाजार की प्रतिस्पर्धा में अपनी जगह बना रही हैं।
इससे भारत विश्व निवेशकों के लिए एक आकर्षक अंतरिक्ष-गंतव्य बनता जा रहा है। पिछले तीन वर्षों में अंतरिक्ष स्टार्टअप में निवेश कई गुना बढ़ा है और यह क्षेत्र अब देश की उभरती ‘न्यू स्पेस इकॉनमी’ का नया केंद्र बनने लगा है। सरकार की अंतरिक्षीय अपेक्षा है कि जैसे नासा और स्पेसएक्स जैसी निजी कंपनियां साझेदारी में काम करती हैं, वैसा मॉडल विकसित करे। देश में इस तरह की साझेदारी संरचना संभव है, बशर्ते विनियामक ढांचा अधिक आधुनिक एवं तेजी से निर्णय लेने वाला और प्रतियोगी हो। हमें इस दिशा में कुछ अतिरिक्त कदम भी उठाने होंगे। अंतरिक्ष बीमा को विकसित करना, टेक–टेस्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार करना, निजी खिलाड़ियों के लिए दीर्घकालिक नीति–स्थिरता सुनिश्चित करना और छोटे–मध्यम उपग्रह बाजार के लिए प्रोत्साहन योजना लागू करना, इस पूरे ईकोसिस्टम को और मजबूत कर सकता है। फिलहाल विक्रम–1 का अनावरण केवल एक रॉकेट की ‘मुंह दिखाई’ नहीं बल्कि यह भारत के ‘नए अंतरिक्ष युग’ का उद्घोष है। एक ऐसा युग, जिसमें सरकारी अनुसंधान और निजी नवाचार मिलकर भारत को वैश्विक अंतरिक्ष महाशक्ति बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं।
