कैंपस का पहला दिन : जब दादाजी पहले दिन कॉलेज छोड़ने गए

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Published By Anjali Singh
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कॉलेज का पहला दिन यह सोचकर ही मन में कुछ सिरहन सी होने लगी कि अब बचपन के पायदान से निकलकर युवा अवस्था की श्रेणी में पहुंच रहे हैं, कुछ उत्साह, कुछ घबराहट और एक नई शुरुआत की उमंग भी। यह सोच-सोचकर मन में खुशी थी कि अब स्कूल के अनुशासित जीवन से मुक्ति मिलेगी, अब कोई स्कूल ड्रेस नहीं होगी और न ही समय की पाबंदी वाला वो स्कूल का घंटा। अब मैं स्वतंत्र होंगी। अपने नए माहौल में नए रंग-ढंग से रहूंगी, फैशनेबल कपड़े पहन सकूंगी,अब कोई रोक-टोक नहीं होगी। कॉलेज में कैंटीन होगी, वहां दोस्तों के साथ बैठकर स्नेक्स खाऊंगी, गप्पे लगाऊंगी। मन होगा तो पढ़ेंगे, नहीं होगा तो क्लास बंक। अब कोई बंधन न होगा और इस तरह से मेरा मन तरह-तरह के सपने बुनने लगा। मैं कॉलेज के स्वच्छंद वातावरण में तितली की भांति उड़ने के लिए बेहद ही उत्साहित थी।

कॉलेज जाने का पहला दिन आ गया था। मैं सुबह से ही तैयारी में लग गई और अति उत्साह में जल्दी ही तैयार हो गई थी। मैं कॉलेज के लिए चलने लगी। मेरे मम्मी, पापा, भाई सब मुझे शुभकामनाएं देने लगे। मैं जाने के लिए अपनी स्कूटी निकल रही थी कि तभी दादाजी की आवाज आई, ‘ रुको बेटा!, मैं तुम्हें छोड़ने चलता हूं।’ यह सुनकर मैं स्तंभित रह गई और संकोच में आ गई कि यह दादाजी क्या कह रहे हैं? वह मुझे अभी भी बच्ची ही समझ रहे थे, लेकिन वह मुझे छोड़ने जाने के लिए बेताब थे। मैं उनकी आज्ञा का उल्लंघन न कर सकी और अपनी भावनाओं को मन में दबाए हुए, चुपचाप उनके स्कूटर के पीछे बैठ गई। मेरे सपनों की उड़ान पर ब्रेक सा लग गया। मैं अपने आपको बड़ा ही परतंत्र सा महसूस कर रही थी। मुझे बड़ी सकुचाहत हो रही थी कि मेरे सहपाठी मेरे बारे में क्या सोचेंगे? वे मेरे ऊपर हसेंगे और मेरी खिल्ली उड़ाएंगे की यह तो अभी भी स्कूल की बच्ची ही है, जो अपने दादाजी के साथ आई है। 

इसी उधेड़बुन को सोचते-सोचते कॉलेज आ गया। मैं दादा जी को कॉलेज के गेट से ही विदा करना चाहती थी, पर वह मुझे क्लास तक ही छोड़ने चल पड़े। अब तो मेरा आत्मविश्वास बहुत ही डूब रहा था और मुझे लज्जा आ रही थी कि मेरे दोस्त मेरे बारे में क्या टिप्पणी करेंगे? तभी मैं क्लासरूम पहुंची, वहां बाहर खड़े सहपाठियों ने मुझे हेलो बोला और तपाक से पूछा, ‘ यह कौन हैं?’ मैंने कुछ दबे हुए और संकोच के साथ कहा, ‘ यह मेरे दादाजी हैं।’वे बोले, ‘वाओ! तेरे दादाजी तुझे छोड़ने आए हैं, तू तो बहुत लकी है कि तेरे दादाजी तुझे इतना प्यार करते हैं और तेरा इतना ख्याल रखते हैं।’ यह सुनकर मैं आश्चर्यचकित रह गई और मेरा आत्मविश्वास बढ़ गया। दादाजी के प्रति मेरे मन में श्रद्धा और स्नेह और भी बढ़ गया। मुझे अपने घरवालों के प्यार की क़द्र महसूस हुई और मुझे अपनी स्थिति भी मजबूत नजर आई। फिर मैं पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने सभी सहपाठियों, सभी प्रोफेसरों से मिली और पूरे कॉलेज में मस्ती से घूमी। इस प्रकार मेरा कॉलेज का पहला दिन खुशी, आनंद और आत्मविश्वास के साथ बीता।-श्रुति सुकुमार, बरेली