आपबीती: याद आते हैं स्कूल के अमरूद-आम के पेड़
बचपन के विद्यालय के प्रांगण में कदम रखता हूं, तो बीते हुए दिनों की यादें फिर आंखों के समक्ष तैरने लगती हैं और लगता है जैसे कल ही की बात हो। हालांकि विद्यालय को छोड़े हुए चार दशक का समय हो गया है, लेकिन बचपन जीवन का एक ऐसा क्षण है, जो भुलाए नहीं भूलता। स्कूल में हमारे हिस्ट्री के सर रहे लोकप्रिय केके तिवारी सर बताते हैं कि जब विद्यालय की स्थापना हुई थी तब स्कूल के संस्थापक रहे ओल्ड जॉन निकटवर्ती बच्चों को पैडल रिक्शा में स्कूल लाया करते थे और उन्हें छोड़ने भी जाया करते थे।
आज चंद बच्चों से शुरू हुआ यह सफर कई हजार बच्चों तक पहुंच गया है। यहां से पढ़े बच्चे कई क्षेत्रों में अपना नाम कमा रहे हैं। लखनऊ के वर्तमान मंडल आयुक्त भी इसी स्कूल से पढ़े हुए हैं। मेरा भी सौभाग्य है कि मैंने इस विद्यालय से कक्षा 10 तक शिक्षा प्राप्त की है। आज यह विद्यालय 12 वीं तक है, पर हमारे समय में यह विद्यालय दसवीं तक की हुआ करता था।
इस कॉटेज में आगे एक म्यूजिक रूम तथा एक टीटी यानी टेबल टेनिस रूम हुआ करता था। साथ ही शिक्षकों के बैठने के लिए भी एक कमरा था और छोटे बच्चों की कक्षाएं भी। पीछे एक कैंटीन भी थी और उसके बगल में बच्चों के लिए झूले और लाल अमरूद के कुछ पेड़। इन अमरूद और आम के पेड़ों से भी बड़ी सुनहरी यादें जुड़ी हुई है। अक्सर अमरूद और आम तोड़ने के लिए मैं इन पेड़ों में चढ़ जाया करता था। कुछ अमरूद पेड़ पर बैठकर खाए, तो बाकी पेड़ के नीचे खड़े अपने दोस्तों को दिए। कुछ साथी यह देखने के लिए खड़े रहते थे कि कोई शिक्षक तो नहीं आ रहा। जैसे ही कोई आता, दोस्तों की सीटी बजती और मैं पेड़ से नीचे कूद जाता। झूलों में बैठने के लिए तो हम दोस्तों में जैसे होड़ सी लग जाती। मुझे वो गोल-गोल घूमने वाला झूला बहुत पसंद था। हम उसे जोर से घुमाते और दौड़कर उस पर चढ़ जाते। इस झूले पर चढ़ते समय मैं कई बार गिरा भी और चोटें भी आईं।
म्यूजिक रूम से जुड़ी कुछ अच्छी तथा कुछ ज्यादा कटु यादें भी हैं। गाना गाने में ज्यादातर लड़के अच्छे नहीं थे। चूंकि हमारे संगीत के टीचर जिनका नाम सैमसन था बहुत सख्त थे, इसलिए अधिकांशतः हमें उनकी डांट और पिटाई खानी पड़ती थी। आज याद नहीं कि गाना न गाने पर कितनी बार मेरी पिटाई हुई थी। मुझे संगीत का पीरियड शायद ही कभी अच्छा लगा हो। मेरी तथा अन्य लड़कों की तो यही कोशिश रहती थी कि किसी तरह म्यूजिक रूम में जाने से बच जाए। एक बार हमारी म्यूजिक सर से कुछ बहस हो गई, तो वह हम सब लड़कों को प्रिंसिपल के पास ले गए और फिर वहां जो हमारी पिटाई हुई, वह आज भी मैं नहीं भूला।
साथ में था एक टेबल टेनिस का रूम, जहां टेनिस खेलने के लिए एक टेबल लगी हुई थी। हालांकि मैंने तो टीटी में यदा-कदा ही हाथ आजमाया, क्योंकि इस खेल में मुझे जरा भी रुचि नहीं थी, पर सच कहूं तो यह हमारे छिपने का रूम था, खासकर SUPW पीरियड में। SUPW यानी ऐसा पीरियड, जिसमें हमें हस्तकला का जौहर दिखलाना पड़ता था। लड़कियों की तरह कुछ चीजें बनाने में हमारी तो कभी रुचि रही नहीं, इसलिए जैसे ही SUPW का पीरियड आता था, हम कुछ लड़के पिछले दरवाजे से निकलकर छुपते-छुपाते टेबल टेनिस रूम में पहुंच जाया करते थे। कभी कोई टीचर हमें वहां देख लेता और कुछ पूछता तो हम झूठ कह देते कि हमें टेबल टेनिस सीखने के लिए भेजा गया है। चुपचाप टेनिस खेलते और पीरियड खत्म हुआ तो वापस अपनी क्लास में। आज लगता है कि हमें झूठ नहीं बोलना चाहिए था और ऐसा नहीं करना चाहिए था, लेकिन क्या दिन थे वो भी भुलाए नहीं भूलते। ऐसी कई यादें हैं, पर यादों का क्या वह तो समय-समय पर याद आ ही जाती हैं।– दीपक नौगाई
