शंकर का शंख
एक बार भगवान शंकर ने लोगों को नाना प्रकार के पाप करते हुए देखा, तो कोप किया और निश्चय कर लिया कि जब तक लोग पाप करना नही छोड़ेंगे, तब तक मैं शंख नही बजाऊंगा। भगवान शंकर ने शंख नही बजाया, शंख नही बजा, तो बादलों ने वर्षा नही की। वर्षा नही हुई, तो पृथ्वी …
एक बार भगवान शंकर ने लोगों को नाना प्रकार के पाप करते हुए देखा, तो कोप किया और निश्चय कर लिया कि जब तक लोग पाप करना नही छोड़ेंगे, तब तक मैं शंख नही बजाऊंगा। भगवान शंकर ने शंख नही बजाया, शंख नही बजा, तो बादलों ने वर्षा नही की। वर्षा नही हुई, तो पृथ्वी पर अकाल पड़ गया। क्लेश, संताप और दुखों की कोई सीमा नहीं रही।
दुनिया ने खूब प्रायश्चित किया, पर शंकर ने शंख नहीं बजाया। एक दिन शंकर- पार्वती आकाश मार्ग से जा रहे थे, उन्होंने देखा कि जेठ की दोपहरी में एक किसान अपना खेत जोत रहा था, पसीने से सराबोर परन्तु अपनी धुन में मगन। शंकर- पार्वती विमान से उतरे आये और बोले, पागल किसान, पानी बरसे तो बरसों बीत गये, तू सूखी कठोर धरती को जोत कर बेकार मेहनत कर रहा है?
सो तो बात ठीक है, मगर हल चलाने का अभ्यास कहीं भूल न जाऊं। यदि हल चलाना भूल गया तो वर्षा से भी क्या होगा? इसलिये अभ्यास बनाये रखता हूं। किसान के बोल भगवान शंकर के कलेजे को पार कर गये। वे सोचने लगे कि मुझे भी शंख बजाये बरसों बीत गये हो गए, कहीं मेरा भी अभ्यास तो नही छूट गया? भगवान शंकर ने झोली में से शंख निकाला और फूंक लगायी। बादलों को संकेत मिल गया। घटाएं घुमड़ने लगीं चारों ओर जलमयी – जलमयी हो गया।
राजेंन्द्र रंजन चतुर्वेदी
