बरेली: उर्स-ए-ताजुश्शरिया पर भी आर्थिक चोट झेलेंगे कारोबारी

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मोनिस खान, बरेली। 16 जून से उर्स-ए-ताजुश्शरिया का आगाज होना है। 17 जून को कुल की रस्म अदा की जाएगी लेकिन मोहल्ला सौदागरान और मथुरापुर में हलचल पहले जैसी नहीं है क्योंकि कोरोना महामारी के चलते धार्मिक आयोजन को सीमित कर दिया गया है। इसका असर उर्स के दौरान कारोबार करने वालों पर भी पड़ …

मोनिस खान, बरेली। 16 जून से उर्स-ए-ताजुश्शरिया का आगाज होना है। 17 जून को कुल की रस्म अदा की जाएगी लेकिन मोहल्ला सौदागरान और मथुरापुर में हलचल पहले जैसी नहीं है क्योंकि कोरोना महामारी के चलते धार्मिक आयोजन को सीमित कर दिया गया है। इसका असर उर्स के दौरान कारोबार करने वालों पर भी पड़ रहा है। इस बार भी कारोबारी आर्थिक चोट झेलेंगे और करोड़ों रुपए का कारोबार प्रभावित होगा।

उर्स-ए-अजहरी दरगाह पर होने वाला यह दूसरा सबसे बड़ा उर्स है। बरेलवी मसलक के मजहबी रहनुमा ताजुश्शरिया मुफ्ती मोहम्मद अख्तर रजा खां के मुरीद देश-विदेश में भारी तादाद में हैं। अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, साउथ अफ्रीका जैसे दर्जनों देशों से आकर उनके मानने वाले पूरी अकीदत से उर्स में शिरकत करते हैं मगर पिछले साल की तरह इस साल भी बाहर से आने वाले अकीदत मंद उर्स-ए-अजहरी में शिरकत नहीं कर पाएंगे। जिसकी वजह से दरगाह के आसपास होने वाला कारोबार बड़ी संख्या में प्रभावित होने वाला है।

दूसरी लहर में हुए लाकडाउन के चलते जहां सौदागरान में मौजूद धार्मिक किताबों, टोपी, तुगरों, अंगूठी, सुर्मे आदि के दुकानदार आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहे हैं तो वहीं उर्स के जरिए मिलने वाला कारोबार भी जाता रहा। यहां मौजूद दुकानदारों ने बताया कि देश-विदेश से आने वाले अकीदतमंद खरीदारी करते हैं जिस पर उनकी कमाई टिकी है। पिछले साल उर्स-ए-अजहरी और उर्स-ए-आला हजरत महामारी की भेंट चढ़ गया। इस बार भी कारोबार होना मुश्किल है।

दरगाह के पास टोपियों की दुकान चलाने वाले मोअत्तर अली ने बताया कि उर्स का आयोजन ऑनलाइन हो रहा है। लोग आएंगे नहीं तो जाहिर है रोजागर भी नहीं होगा। दुकानदार गुलाम रजा ने बताया कि बीते सालों के मुकाबले कारोबार 20 फीसद भी नहीं रहा।

सही मायनों में मना था पहला उर्स
साल 2019 में उर्स-ए-ताजुश्शरिया के दौरान मोहल्ला सौदागरान और मथुरापुर रौशनी में नहा गया था। इसके बाद आने वाले सालों में ऐसा मौका फिर नहीं आया। महामारी के चलते पिछले साल भी उर्स ऑनलाइन मनाया गया तो इस साल भी सौदागरान और मथुरापुर में सभी आयोजन कोविड प्रोटोकॉल के साये में होंगे। जिसकी वजह से अकीदतमंदों में मायूसी जरूर है।

ताजुश्शरिया की किताबों की होती है मांग
ताजुश्शरिया मुफ्ती मोहम्मद अख्तर रजा खां ने अपनी हयात के दौरान 60 से ज्यादा किताबें लिखी हैं। जिनकी मांग उर्स-ए-रजवी और उर्स-ए-ताजुश्शरिया के दौरान खूब होती हैं। उन्होंने अपनी हयात में टीवी वीडियो का आपरेशन, मिराते नजदिया(अरबी), अल हक्कुल मुबीन,(अरबी), शर-ए-हदीस-ए-नियत, तीन तलाक शरयी हुक्म, आसार-ए-कयामत, हिजरत-ए-रसूल जैसी किताबें लिखीं। जिनको खूब पढ़ा जाता है। विदेश से आने वाले लोग उर्स में टोपी से लेकर सुरमा, इत्र, तुगरे, अंगूठी आदि खूब खरीदते हैं। इन चीजों को देश-विदेश से आने वाले लोग दरगाह की यादगार के तौर पर भी ले जाते हैं। उर्स के मौके पर छोटे दुकानदार शीरनी भी बेचते हैं जिससे उर्स के मौके पर उनका रोजगार हो जाता है।

उर्स-ए-ताजुश्शरिया नजदीक है लिहाजा तैयारी कर रखी है। मगर उर्स-ऑनलाइन होगा ऐसे में कारोबार होना बेहद मुश्किल है। बीते सालों के मुकाबले कारोबार 20 फीसद भी नहीं रहा। -गुलाम रजा, दुकानदार

बरकाती टोपी, तुर्की टोपी, ताजुश्शरिया के नक्श, आदि मंगवाए हैं। लेकिन बिक्री होना तो मुश्किल है। कोविड के प्रोटोकॉल के तहत ही उर्स होगा ऐसे में आर्थिक चोट तो सहन करनी ही पड़ेगी। -जफर उल्ला, दुकानदार

पिछले साल लाकडाउन ने उर्स प्रभावित किया था इस साल भी यही सूरत-ए-हाल है लिहाजा खर्चा निकालना भी मुश्किल हो गया है। देश विदेश से आने वाले अकीदतमंदों पर ही दुकानदारी टिकी है। -वसीम हुसैन, दुकानदार

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