वृद्धाश्रम: आश्रम में रह रहे बुजुर्गों के दिल में परिवार द्वारा दिया दर्द आज भी ताजा
जूही दास/मुरादाबाद, अमृत विचार। आत्मसम्मान को बचाने के लिए घर छोड़कर वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्ग इस बार सम्मान से दिवाली मनाएंगे। जीवनसाथी का साथ छूट जाने के बाद संतान द्वारा दिया गया दर्द आज भी इनके दिलों में ताजा है। लेकिन, ये फिर भी छोटी-छोटी खुशियों से अपने जीवन में रंग भर रहे हैं। अमृत …
जूही दास/मुरादाबाद, अमृत विचार। आत्मसम्मान को बचाने के लिए घर छोड़कर वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्ग इस बार सम्मान से दिवाली मनाएंगे। जीवनसाथी का साथ छूट जाने के बाद संतान द्वारा दिया गया दर्द आज भी इनके दिलों में ताजा है। लेकिन, ये फिर भी छोटी-छोटी खुशियों से अपने जीवन में रंग भर रहे हैं।
अमृत विचार की टीम ने बुद्धि विहार स्थित वैदिक वानप्रस्थ वृद्धाश्रम पहुंच कर वृद्धों से बातचीत की, किसी न खुशी जाहिर की तो किसी ने दर्द बयां किया। उनका कहना है कि त्योाहर पर घर की याद तो आती है, लेकिन वह हर साल दिवाली वृद्धाश्रम में ही मनाते हैं। इस बार भी उन्होंने दिवाली की तैयारी शुरू कर दी हैं। वह धूम-धाम से इस त्यौहार को मनाएंगे।
पुराने दिन याद आए तो गला भर आया
दिल्ली की रहने वाली 58 वर्षीय नूतन बताती हैं कि जिंदगी का सफर पूरा होने से पहले ही पति की अचानक मौत ने उनके जीवन की दिशा और दशा दोनों को बदल कर रख दिया। पति की मृत्यु के बाद वह बेटों को बोझ लगने लगीं और उन्होंने आश्रम को अपना ठिकाना बना लिया। उनका कहना है कि वह आज भी अपने बच्चों से दिल से प्यार करती हैं। लेकिन, अतीत को याद कर उनका गला भारी हो गया। उन्होंने अपने बच्चों को बेहतर भविष्य देने के लिए दिल्ली पुलिस की नौकरी त्याग दी थी। लेकिन, आज जब बच्चे कामयाब हो गए तो उन्होंने उन्हें ही ठुकरा दिया। वह 2009 से आश्रम में निवास कर रही हैं।
बच्चों का साथ याद कर भर आती है आंखें
बरेली निवासी 64 वर्षीय वीना रस्तोगी बताती हैं कि भले ही बेटों ने उन्हें घर से नहीं निकाला। लेकिन, घर छोड़ने पर जरूर मजबूर कर दिया था। अभी भी बच्चों के साथ सेलिब्रेट किया हर त्योहार याद आता है। बताया कि आश्रम के सदस्य ही अब उनका परिवार हैं। इनके साथ सुख-दुख सांझा करती हैं। बच्चों को याद आती है तो वह साल में मिलने चले आते हैं। वह 2016 से वृद्धाश्रम में रह रही हैं।
रिश्तों की अहमियत कुछ नहीं, पैसा ही सब कुछ
71 साल के हो चुके सुभाष मुनि का मानना है कि दुनिया बहुत जालिम है। रिश्तों की बुनियाद और अहमियत आज पैसा तय करता है। बच्चे जब कुछबन जाते हैं तो माता-पिता को भुला देते हैं, जिन्होंने उन्हें इस योग्य बनाया। इंसान को जिंदगी अकेले ही बितानी होती है। उन्होंने बताया कि पत्नी को हमेशा चिंता सताती थी कि मैं अकेले कैसे रह पाऊंगा। उसके बैकुंठ धाम जाने के बाद बच्चों को परेशानी न हो इसलिए जीवन का आखिरी पड़ाव आश्रम में गुजार रहा हू़ं। अब घर जाने की इच्छा ही खत्म हो गई।
