मुरादाबाद : लिंगानुपात सुधरा लेकिन बेटों का मोह अब भी कायम

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जूही दास/मुरादाबाद, अमृत विचार। भले ताजा आंकड़ों में जिले का लिंगानुपात सुधरा हो, लेकिन अब भी लोगों का बेटों के लिए मोह छूटा नहीं है। चाइल्ड लाइन के आंकड़े इस क तस्दीक कर रहे हैं। पांच वर्षों में जिले में 20 नवजात बच्चियां सड़कों पर लावारिस पड़ी मिलीं हैं, जिन्हें टीम द्वारा रेस्क्यू कर विशेष नवजात …

जूही दास/मुरादाबाद, अमृत विचार। भले ताजा आंकड़ों में जिले का लिंगानुपात सुधरा हो, लेकिन अब भी लोगों का बेटों के लिए मोह छूटा नहीं है। चाइल्ड लाइन के आंकड़े इस क तस्दीक कर रहे हैं। पांच वर्षों में जिले में 20 नवजात बच्चियां सड़कों पर लावारिस पड़ी मिलीं हैं, जिन्हें टीम द्वारा रेस्क्यू कर विशेष नवजात शिशु देखभाल इकाई (एसएनसीयू) में भर्ती के बाद रामपुर स्थित दत्तक ग्रहण इकाई को सुपुर्द किया गया।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) में सामने आई लिंगानुपात की नई तस्वीर में जिले में सामने आए आंकड़ों की मानें तो पांच वर्षों में जिले में 1000 पुरुष के सापेक्ष 1022 बेटियों जन्म ले रहीं हैं। इससे इतर बच्चियों को फेंकने की घटनाएं भी तेजी से बढ़ीं हैं, लेकिन कोई ध्यान देने वाला नहीं है। नतीजा है कि बच्चियों को फेंकने वालों के हौसले बुलंद हो रहे हैं। चाइल्डलाइन की प्रभारी श्रद्धा शर्मा ने बताया कि पांच वर्षों में बच्चियों को फेंके जाने के मामलों में बढ़ोतरी हुई है।

यानी बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का जितना प्रचार-प्रसार हुआ है, उतना ही बच्चियों को फेंके जाने के मामले बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। 2018 में तीन नवजात फेंके गए, जिनमें दो बेटियां थीं। 2019 में पांच नवजात फेंके गए हैं, जिनमें चार बेटियां हैं। पांच वर्षों के आंकड़ों पर ध्यान दिया जाए तो 25 मामले बच्चों को फेंकने के मिले हैं। जिनमें कुछ बच्चे सड़कों पर तो कुछ झाड़ियों पर मिले हैं। इनमें बेटियों की संख्या 20 है।

ताजा मामला मझोला थाने का
बच्ची मिलने का ताजा मामला दो महीने पहले का है। जब मझोला थाना क्षेत्र स्थित गुरुद्वारे के पास झाड़ी में नवजात बच्ची पड़ी मिली थी। उसकी हालत खराब होने के चलते चाइल्ड लाइन टीम द्वारा बच्ची को मेडीसिटी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां बच्ची की पीठ में ग्रोथ दिखने के बाद गांधीनगर के नर्सिंग होम में बच्ची का ऑपरेशन कराया गया। अभी अस्पताल में बच्ची की देखरेख चल रही है। बाल कल्याण समिति के आदेशानुसार बच्ची को शिफ्ट किया जाएगा।

बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया
हर साल तकरीबन चार-पांच बच्चियां और बच्चे लावारिस हालत में मिलते हैं, लेकिन अच्छी बात यह है कि इनको गोद लेने वालों की संख्या बेहद ज्यादा है। हालांकि, बच्चों को गोद देने से पहले एजेंसियां और सरकार यह पुख्ता जरूर करती है कि बच्चा सही लोगों के हाथों में जाए। सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी को कारा नाम से जाना जाता है। यह संस्था नोडल बॉडी की तरह काम करती है। कारा मुख्य रूप से अनाथ, छोड़ दिए गए बच्चों के गोद देने के लिए काम करती है।

बच्चों को लावारिस फेंकने वालों पर नहीं की जाती कार्रवाई
जिले में लगातार लावारिस हालात में नवजात के मिलने की खबरें आती रहतीं हैं पर इन सबके बीच दोषी माता-पिता पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाती है, क्योंकि पुलिस अब तक ऐसे माता-पिता का सुराग नहीं निकाल पाई है। अपराध करने वाले ऐसे लोगों की जानकारी न मिलने से दोषी कानून के शिकंजे से बचे रहते हैं।

इस संबंध में राज्य बाल अधिकारी आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विशेष गुप्ता ने कहा कि प्रशासन अपना कार्य करने में जुटा है, लेकिन अब सभी एनजीओ को आगे आना होगा और अपना पूर्ण रूप से सहयोग देते हुए जमीनी स्तर पर कार्य करना होगा। इसके साथ दत्तक ग्रहण के नियमों को देखते हुए उन्हें शिथिल करना होगा, जिससे बेटियों को गोद लेने वाले आ सकें।

 

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