जब माधुरी दीक्षित ने जीता था बिरजू महाराज का दिल, जानिए उनके जीवन से जुड़े किस्से
Pandit Birju Maharaj: सुप्रसिद्ध कत्थक नर्तक बॉलीवुड के कोरियोग्राफर पंडित बिरजू महाराज का जन्म 4 फ़रवरी, 1938 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश के ‘कालका बिन्दादीन घराने’ में हुआ था। पहले उनका नाम ‘दुखहरण’ रखा गया था, जो बाद में बदल कर ‘बृजमोहन नाथ मिश्रा’ हुआ। इनके पिता का नाम जगन्नाथ महाराज था, जो ‘लखनऊ घराने’ से …
Pandit Birju Maharaj: सुप्रसिद्ध कत्थक नर्तक बॉलीवुड के कोरियोग्राफर पंडित बिरजू महाराज का जन्म 4 फ़रवरी, 1938 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश के ‘कालका बिन्दादीन घराने’ में हुआ था। पहले उनका नाम ‘दुखहरण’ रखा गया था, जो बाद में बदल कर ‘बृजमोहन नाथ मिश्रा’ हुआ। इनके पिता का नाम जगन्नाथ महाराज था, जो ‘लखनऊ घराने’ से थे और अच्छन महाराज के नाम से जाने जाते थे। 500 ठुमरी जानने वाले बिरजू ने उस उम्र में सिखाना शुरू कर दिया था जब लोग सीखते है। बिंदादिन घराने से तासल्लुक रखने वाले बिरजू ने इसी साल 17 जनवरी को दुनिया से विदाई ले ली। आज आगर होते तो 85वां जन्मदिन मना रहे होतें।

माधुरी दीक्षित थीं बिरजू महाराज की फेवरेट अभिनेत्री
बिरजू महाराज ने यूं तो हिंदी सिनेमा की कई एक्ट्रेस के साथ काम किया लेकिन पसंद उन्हें माधुरी दीक्षित थीं। उन्होंने माधुरी को फिल्म “दिल तो पागल है” में डांस सिखाया था। बिरजू महाराज ने माधुरी की तारीफ करते हुए कहा था कि “उनमें नेचुरल टैलेंट हैं”।

माधुरी भी उनकी फैन हैं। बिरजू महाराज के नृत्य कला के साथ-साथ उनके सेंस ऑफ ह्यूमर की तारीफ भी करते हुए माधुरी ने बताया था कि “शूटिंग सेट पर महाराज अक्सर अपने विदेशी यात्राओं से जुड़े मजेदार किस्से बता कर खूब हंसाते थे”।

फिल्मों में मिली पहचान
बिरजू महाराज ने बताया था कि वह कभी फिल्मों में काम नहीं करना चाहते थे। लेकिन हिंदी सिनेमा के जाने माने फिल्मकार सत्यजीत रे ने जब‘शतरंज के खिलाड़ी के लिए ऑफर दिया तो पहले ये वादा ले लिया था कि उनके काम में किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं होगी। फिल्म के लिए दो क्लासिकल डांस ही नहीं रचा बल्कि गाया भी। इसके बाद तो‘देवदास’, दिल तो पागल है, बाजीराव मस्तानी जैसी फिल्मों में कोरियोग्राफी की।

बिरजू नाम रखने के पीछे थी दिलचस्प वजह
अच्छन महाराज के बेटे और शंभू महाराज के भतीजे पंडित बिरजू महाराज ने अपने नाम को लेकर एक बार बड़ा ही दिलचस्प खुलासा किया था। मीडिया को दिए इंटरव्यू में बताया था कि जब लखनऊ के एक अस्पताल में मेरा जन्म हुआ था तो उस समय मुझे छोड़कर अस्पताल में सब लड़कियां पैदा हुई थीं। गोपियों के बीच मैं बृजमोहन तो मुझे बिरजू कहा जाने लगा’।
मंच कमजोर था, इसलिए नहीं दी प्रस्तुति
रजा लाइब्रेरी के कार्यक्रम में बिरजू महाराज को अपने नृत्य की प्रस्तुति भी देनी थी। लेकिन उन्होंने पहले मंच पर चढ़कर पैर को पटककर देखा, इसके बाद प्रस्तुति देने से मना कर दिया था। लकड़ी के तख्तों से बने मंच को कमजोर बताया था, कत्थक नृत्य की प्रस्तुति से मंच टूट सकता था, इसलिए वह बिना प्रस्तुति दिए ही दिल्ली चले गए थे। रजा लाइब्रेरी के मीडिया प्रभारी हिमांशु सिंह कहते हैं, कत्थक नृत्य की प्रस्तुति नहीं होने से दर्शक निराश हुए थे।
जिस घर में रहे उसकी चौखट और दीवारों चूमा
बिरजू महाराज तीन वर्ष की आयु से करीब 10-11 वर्ष तक की उम्र तक रामपुर में ही चुपशाह मियां की ज्यारत के पास बने पुराने मकान में रहे। उन्होंने 2006 में रामपुर आगमन पर इसका खुद जिक्र किया था। वह अपने पुराने उस मकान को भी देखने गए जहां उनका बचपन बीता था। उन्होंने भरे मन और भीगी आंखों से उस मकान की टूटी दीवारों और मिट्टी को चूमा, चौखट को चूमा। कुछ वक्त वहीं बिताया। इस दृश्य को देखकर साथ में गईं आकाशवाणी की तत्कालीन कार्यक्रम अधिकारी और मौजूदा निदेशक मंदीप कौर भी भावुक हो गई थीं।
इस पुरस्कार से सम्मानित
बिरजू महाराज को शुरू से ही अपने क्षेत्र में काफी प्रशंसा और सम्मान मिला है, जिनमें 1986 में पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और कालिदास सम्मान प्रमुख हैं। इसके साथ ही उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और खैरागढ़ विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त की। 2016 में, उन्हें हिंदी फिल्म बाजीराव मस्तानी में “मोहे रंग दो लाल” गीत के लिए कोरियोग्राफी के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। 2002 में लता मंगेशकर पुरस्कार। भारत मुनि सम्मान, 2012 में सर्वश्रेष्ठ कोरियोग्राफी के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार दिया गया फिल्म विश्वरूपम के लिए।
