यहां पीपल के पेड़ की जटाओं से उभरी पांच अंगुलियां, महादेव के इस मंदिर में आकर पूरी होती है चार धाम की यात्रा
हल्द्वानी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, उत्तराखंड में कई देवी-देवताओं का निवास स्थल बताया जाता है। यही वजह है कि इसे देवभूमि के नाम से पुकारा जाता है। कुमाऊं के द्वार हल्द्वानी के पास लामाचौड़ क्षेत्र में स्थित ऐसा ही एक सिद्धपीठ श्री चार धाम मंदिर के रूप से जाना जाता है। माना जाता है कि …
हल्द्वानी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, उत्तराखंड में कई देवी-देवताओं का निवास स्थल बताया जाता है। यही वजह है कि इसे देवभूमि के नाम से पुकारा जाता है। कुमाऊं के द्वार हल्द्वानी के पास लामाचौड़ क्षेत्र में स्थित ऐसा ही एक सिद्धपीठ श्री चार धाम मंदिर के रूप से जाना जाता है। माना जाता है कि यह मंदिर करीब साढ़े चार सौ साल पुराना है। यही वजह है कि इस मंदिर में साल भर श्रद्धालु हाजिरी लगाने पहुंचते हैं। माना जाता है कि सच्चे मन से की गई मुराद चार धाम मंदिर में आकर जरुर पूरी होती है।

भगवान शिव के केदारनाथ रूप के दर्शन हों या फिर कैलाश पर्वत पर बसा भगवान शिव का परिवार, इस मंदिर में देवों के देव महादेव की कृपा बरसती है। यहां राधा कृष्ण, भगवान बदरीनाथ, शनिदेव, कुबेर समेत कई देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं। यहां शनिदेव मंदिर के पास पीपल के पेड़ पर बनी पांच अंगुलियों की आकृति श्रद्धालुओं को बरबस ही अपनी ओर खिंचती है।

मंदिर के पुजारी पंडित चंद्रशेखर जोशी बताते हैं कि इस मंदिर का इतिहास करीब 450 साल पुराना है। ऐसा कहा जाता है कि चार धाम के दर्शन की इच्छा रखने वाले श्रद्धालुओं की आकांक्षा इस मंदिर में आकर पूरी हो जाती है। अटूट आस्था के केंद्र चार धाम मंदिर में महाशिवरात्री पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। इसके साथ ही साल भर मंदिर परिसर में श्रीमद्भागवत कथा, रामायण, सुंदर कांड समेत अन्य धार्मिक कार्यक्रमों से वातावरण भक्तिमय रहता है। पंडित चंद्रशेखर जोशी ने बताया कि इस मंदिर में आकर चार धामों के दर्शन के बराबर पुण्य लाभ होता है। यही वजह है कि इस मंदिर की महिमा दूर-दूर तक फैली हुई है।

