उत्तराखंड: इस चोटी को आज तक फतह नहीं कर सका कोई पर्वतारोही, चार धर्मों की आस्था का केंद्र है यह स्थान

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हल्द्वानी, अमृत विचार। देश-दुनिया में ऐसे कई पर्वतारोही हैं जिन्होंने अपनी हिम्मत और जुनून के दम पर पर्वत शिखरों को छुआं है। 8848 मीटर की ऊंचाई वाली दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को अब तक करीब 7 हजार से अधिक पर्वतारोही फतह कर चुके हैं। लेकिन आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि …

हल्द्वानी, अमृत विचार। देश-दुनिया में ऐसे कई पर्वतारोही हैं जिन्होंने अपनी हिम्मत और जुनून के दम पर पर्वत शिखरों को छुआं है। 8848 मीटर की ऊंचाई वाली दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को अब तक करीब 7 हजार से अधिक पर्वतारोही फतह कर चुके हैं। लेकिन आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि माउंट एवरेस्ट से करीब 2 हजार मीटर कम ऊंचे 6638 मीटर के कैलास पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ सका। पर्वतारोही, विज्ञानी व भूगोलवेत्ताओं के लिए यह अभी भी रहस्य बना हुआ है।

कैलाश पर्वत क्षेत्र को हिंदू मानसखंड कहते हैं। देवाधिदेव महादेव की स्थली होने के नाते हिंदुओं की आस्था का केंद्र तो है ही साथ ही जैन तीर्थांकर ऋषभनाथ को यहीं पर तत्व ज्ञान प्राप्त हुआ। महात्मा बुद्ध को यहीं वास करना बताया गया, तिब्बत के डाओ अनुयायी इसे अध्यात्म का केंद्र मानते हैं। इस तरह से यह कई धर्मों की धुरी है। शायद इसीलिए यह पर्वतारोहियों के लिए अजेय है। आध्यात्मिक लोगों का कहना है कि ये कोई संयोग तो नहीं कि एक ही पर्वत को चार धर्मों के केंद्र में रखा गया है। यहां कुछ तो है जो विज्ञान से परे है।

क्या कहते हैं शोधकर्ता, यह भी जानिए

राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण शोध संस्थान कोसी कटारमल (अल्मोड़ा) के शोधकर्ता रह चुके पर्वतारोही डॉ. महेंद्र सिंह मिराल के मुताबिक, कैलास तकनीकी व भौगोलिक लिहाज से बहुत जटिल पर्वत श्रंखला है। जबर्दस्त चुंबकीय क्षेत्र को खुद में समेटे इस अलौकिक पर्वत की सतह से कुछ ही ऊंचाई तक चढ़ाने पर कुशलतम पर्वतारोही भी थकान से टूट जाता है। उन्होंने बताया कि धार्मिक आस्था के केंद्र कैलास पर्वत पर चढ़ना असंभव है। वहां शरीर के बाल व नाखून तेजी से बढ़ने लगते हैं।

कैलास पर्वत के अजेय होने के यह भी हैं कारण

यह धरती का केंद्र माना जाता है। पूरी धरती पर यही एक जगह है जहां चारों दिशाएं आकर मिलती हैं। दुनिया की अन्य जगहों के मुकाबले कैलाश पर आकर समय तेजी से बीतने लगता है। समय तेजी के बीतने का प्रमाण यह है कि इस क्षेत्र में लोगों ने पाया कि शरीर के बाल और नाखून 2 दिन में ही इतने बढ़ जाते हैं, जितने 2 हफ्ते में बढ़ने चाहिए। शरीर की त्वचा सामान्य से अधिक तेजी से बूढ़ी नजर आने लगती है। इसके अलावा कैलास पर्वत बहुत ज्यादा रेडियोएक्टिव भी है। माना जाता है कि कैलास पर थोड़ा सा ऊपर चढ़ते ही व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है। यहां कोई कंपास काम नहीं करता। बिना दिशा के ज्ञान के पर्वत या जंगल में जाना मौत को दावत देने के समान है।

कैसे पहुंचे कैलास पर्वत

कैलास पर्वत क्षेत्र में जाने के लिए दो रास्ते हैं। एक रास्ता उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से होकर गुजरता है। यह दुर्गम है, यहां अधिकतर पैदल चलकर ही यात्रा पूरी की जा सकती है। दूसरा रास्ता जो थोड़ा आसान है वो है नेपाल की राजधानी काठमांडू से होकर जाता है। यह सरल है क्योंकि यहां पर काफी हद तक सड़क मार्ग से वाहन से जाया जाता है।

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