अमरोहा: तिगरी गंगा मेला आस्था व उल्लास का संगम, गंगा घाट पर उमड़ रहा श्रद्धालु का सैलाब
मनोज पंवार/ अमरोहा, अमृत विचा। मानो तो मैं गंगा मां हूं, न मानो तो बहता पानी…यह गीत की पंक्तियां बहुत कुछ कह रही है। आज भी करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र मां गंगा है। तिगरी में एतिहासिक गंगा मेला चल रहा है। मेला आस्था व उल्लास का संगम है, जी हां अगर आप शाम के …
मनोज पंवार/ अमरोहा, अमृत विचा। मानो तो मैं गंगा मां हूं, न मानो तो बहता पानी…यह गीत की पंक्तियां बहुत कुछ कह रही है। आज भी करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र मां गंगा है। तिगरी में एतिहासिक गंगा मेला चल रहा है। मेला आस्था व उल्लास का संगम है, जी हां अगर आप शाम के समय गंगा घाट पर खड़े होकर गंगा मां को निहारे तो ऐसा लगेगा कि मैं मां की गोद में हूं। गंगा घाट पर आस्था का सैलाब उमड़ रहा है। मेले की सबसे बड़ी बात यह है कि न कोई निमंत्रण और न ही कोई बुलावा, फिर भी गंगा मैया की ओर लाखों श्रद्धालु खींचे चले आते हैं। गंगा की गोद में अपना डेरा लगाकर स्नान कर दान पुण्य करते है और मां से सुख सृमिद्ध का आशीर्वाद मांगते हैं।
गंगा मेले की तैयारियां जहां प्रशासन ने अक्टूबर माह से शुरु कर दी थी तो श्रद्धालुओं ने भी एक माह पहले से ही मेला जाने के लिए तैयारियां आरंभ कर दीं। श्रद्धालु सारे काम छोड़कर गंगा स्नान के लिए जाते हैं और गंगा की रेती में डेरा लगाकर रहते हैं। मेले में सबसे ज्यादा आनंद देशी घी के साथ खिचड़ी का लिया जाता है और साथ में आम का आचार और पुदीने की चटनी हो तो बात ही कुछ और होती है। भीनी-भीनी खुशबू लोगों को अपनी ओर खींच लेती हैं। लोगों की मान्यता है कि पांडवों ने गंगा किनारे दीपदान किया था, त्रेता युग से ही तिगरी गंगा मेला चला आ रहा है।
बताया तो यहां तक जाता है कि एक बार श्रवण कुमार अपने अंधे माता पिता को लेकर गढ़मुक्तेश्वर नगर के कुएं पर भी ठहरे थे। कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान कर वह चले गए। लोग वहां पर करीब पांच दिन तक तंबू लगाकर रहे और तब से ही गंगा मेला लग रहा है। मेले के पीछे कई कहानियां हैं। अंतत: बात कुछ भी हो, लेकिन इस आस्था के समुंद्र में हर किसी को डूबने का मन करता है। गंगा किनारे पर जब सूर्य अस्ताचंल की ओर होता है और उसकी किरणें गंगा में पड़ती है,तो ऐसा लगता है कि सूर्य देव मां से विदा लेकर अस्त हो रहे हों। तिगरी गंगा मेला उत्तर भारत का सबसे बड़ा गंगा मेला है। युवा और बच्चे गंगा मां के आंचल में अठखेलियां खेलते हैं। यह एक अदभुत आस्था का संगम है। जिसमें स्नान कर लोग पवित्र हो जाते हैं।
मेले में मिल जाते है पुराने दोस्त
अमरोहा। तिगरी गंगा मेले में कभी-कभी ऐसे दोस्त मिल जाते हैं, जो काफी समय से नहीं मिले और फोन से भी संपर्क नहीं हो पाया। बचपन की कई यादें कर आंखों में आंसू आ जाते हैं। मेले में जब कोई अचानक मिल जाए तो खुशी का ठिकाना नहीं रहता और वह भी जो बहुत समय से नहीं मिला, रिशेदार एक दूसरे के डेरे में जाते हैं, जिनकी खूब आवभगत की जाती है।
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