उच्च न्यायालय में रिक्तियां भरने की समयसीमा का पालन नहीं किया जाना खेदजनक: संसदीय समिति
संसदीय समिति ने कहा कि सरकार की ओर से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार 31 दिसंबर, 2021 तक तेलंगाना, पटना और दिल्ली उच्च न्यायालय में स्वीकृत पदों की तुलना में 50 प्रतिशत जबकि 10 उच्च न्यायालयों में 40 प्रतिशत से ज्यादा पद खाली थे।
नई दिल्ली। न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर उच्चतम न्यायालय कोलेजियम और सरकार के बीच गतिरोध की पृष्ठभूमि में संसद की एक समिति ने उच्च न्यायालयों में रिक्तियों से संबंधित इस स्थायी समस्या से निपटने के लिए कार्यपालिका और न्यायपालिका से लीक से हटकर नई सोच के साथ आगे आने को कहा है। विधि व कार्मिक विभाग से संबंधित स्थायी समिति ने बृहस्पतिवार को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा कि वह केंद्रीय कानून मंत्रालय के न्याय विभाग की टिप्पणियों से सहमत नहीं है कि उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्तियों का समय इंगित नहीं किया जा सकता।
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समिति ने कहा कि सेकेंड जजेज़ केस और न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) में भी समयसीमा रखी गई है। समिति ने अफसोस जताते हुए कहा कि लेकिन खेदजनक है कि न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों में उन समय-सीमाओं का पालन नहीं किया जा रहा है, जिससे रिक्तियों को भरने में देरी हो रही है। संसदीय समिति ने कहा कि सरकार की ओर से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार 31 दिसंबर, 2021 तक तेलंगाना, पटना और दिल्ली उच्च न्यायालय में स्वीकृत पदों की तुलना में 50 प्रतिशत जबकि 10 उच्च न्यायालयों में 40 प्रतिशत से ज्यादा पद खाली थे।
भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा कि ये सभी बड़े राज्य हैं, जहां जनसंख्या के अनुपात में न्यायाधीशों का अनुपात पहले से ही कम है और इस तरह की रिक्तियां गहन चिंता का विषय है। समिति ने कहा कि सरकार और न्यायपालिका को उच्च न्यायालयों में रिक्तियों की इस बारहमासी समस्या से निपटने के लिए नए तरीके से सोचना चाहिए।
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