सुल्तानपुर : पूछत दीनदयाल के धामा, बतावत आपन नाम सुदामा

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Published By Vinay Shukla
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अमृत विचार, सुल्तानपुर। सुदामा से परमात्मा ने मित्रता का धर्म निभाया। राजा के मित्र राजा होते हैं, रंक नहीं। पर परमात्मा ने कहा कि मेरे भक्त जिसके पास प्रेम धन है वह निर्धन नहीं हो सकता। कृष्ण और सुदामा दो मित्र का मिलन ही नहीं जीव का ईश्वर से तथा भक्त का भगवान से मिलन था।

यह उक्त उदगार अयोध्या से पधारे स्वामी हरिनारायणाचार्य जी महाराज ने चांदा के प्रतापपुर कमैचा में आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत ज्ञानमहा यज्ञ के सातवें दिन कथा विश्राम दिवस पर व्यक्त किए।  उन्होंने कहा कि कृष्ण और सुदामा जैसी मित्रता आज कहां है। यही कारण है कि आज भी सच्ची मित्रता के लिए कृष्ण-सुदामा की मित्रता का उदाहरण दिया जाता है। द्वारपाल के मुख से जैसे सुना पूछत दीनदयाल के धामा, बतावत आपन नाम सुदामा सुनते ही द्वारिकाधीश नंगे पांव मित्र की अगवानी करने पहुंच गए।

लोग समझ नहीं पाए कि आखिर सुदामा में क्या खासियत है कि भगवान खुद ही उनके स्वागत में दौड़ पड़े। श्रीकृष्ण ने स्वयं सिंहासन पर बैठाकर सुदामा के पांव पखारे। कृष्ण-सुदामा चरित्र प्रसंग पर श्रद्धालु भाव-विभोर हो उठे। यहां मुख्य जजमान अरविंद मिश्र, विद्याधर तिवारी, विकास दुबे, संदीप मिश्र, मनोज मिश्र, कमला प्रसाद तिवारी, प्रदीप तिवारी, अमृतलाल जायसवाल, कुलदीप मिश्र आदि रहे।

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