SC बिल्कीस बानो की याचिका पर सुनवाई के लिए हुआ विशेष पीठ का गठन को तैयार 

SC बिल्कीस बानो की याचिका पर सुनवाई के लिए हुआ विशेष पीठ का गठन को तैयार 

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय बिल्कीस बानो सामूहिक बलात्कार मामले के 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई के लिए एक विशेष पीठ गठित करने को बुधवार को तैयार हो गया। बिल्कीस बानो सामूहिक दुष्कर्म मामले के आरोपी वर्ष 2002 के गुजरात दंगे के दौरान उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में भी संलिप्त थे।

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प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जे. बी. परदीवाला की पीठ ने बिल्कीस बानो की याचिका पर सुनवाई करते हुए उनकी वकील शोभा गुप्ता के जरिए उन्हें आश्वासन दिया कि नई पीठ का गठन किया जाएगा। गुप्ता ने मामले पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध करते हुए कहा था कि नई पीठ के गठन की जरूरत है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ नई पीठ का गठन किया जाएगा।

हम इस पर आज शाम विचार करेंगे।’’ इससे पहले सात फरवरी को याचिका को नयी पीठ के समक्ष तत्काल सुनवाई के लिए भेजने का अनुरोध किया गया था और प्रधान न्यायाधीश ने बानो के वकील को भरोसा दिया था कि वह यथाशीघ्र पीठ का गठन करेंगे।

इससे पूर्व 24 जनवरी को गुजरात सरकार द्वारा सामूहिक बलात्कार मामले में 11 दोषियों की सजा माफी को चुनौती देने वाली बिल्कीस बानो की याचिका पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई नहीं हो सकी थी, क्योंकि संबद्ध न्यायाधीश पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा होने की वजह से इच्छा मृत्यु (पैसिव यूथेनेशिया) से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रहे थे।

उस दिन याचिका न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध थी, लेकिन दोनों न्यायाधीश न्यायमूर्ति के एम जोसफ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के तहत इच्छा मृत्यु देने के लिए ‘‘ लिविंग विल या एडवांस मेडिकल डायरेक्टिव’’ के क्रियान्वयन सबंधी दिशानिर्देश में बदलाव की अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई में व्यस्त थे। चार जनवरी को न्यायमूर्ति रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कुछ अन्य जनहित याचिकाओं के साथ इस याचिका पर सुनवाई की।

हालांकि न्यायमूर्ति त्रिवेदी बिना किसी कारण के इस मामले की सुनवाई से अलग हो गईं। बिल्कीस बानो ने 30 नवंबर 2022 को राज्य सरकार द्वारा 11 दोषियों को ‘समयपूर्व’ रिहा करने के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया और कहा कि ‘‘ इसने समाज की अंतरआत्मा को झकझोर दिया है।’’

दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका के अलावा, बानो ने एक अलग याचिका भी दायर की थी जिसमें एक दोषी की याचिका पर शीर्ष अदालत के 13 मई 2022 के आदेश की समीक्षा का अनुरोध किया गया है। उल्लेखनीय है कि गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को रिहा करने का फैसला किया और उन्हें पिछले साल 15 अगस्त को रिहा किया गया।

गौरतलब है कि दोषियों को रिहा करने के खिलाफ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की जनहित याचिकाएं शीर्ष अदालत में लंबित हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2002 में गोधरा में कारसेवकों से भरी ट्रेन जलाने की घटना के बाद गुजरात में हुए दंगे के समय बिल्कीस बानो 21 साल की थी और तब वह पांच महीने की गर्भवती थी। उनके साथ दंगाइयों ने सामूहिक बलात्कार किया था।

उनकी तीन साल की बेटी सहित परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। इस मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को सौंपी गई और उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई मुंबई स्थानांतरित कर दी। मुंबई स्थित सीबीआई की अदालत ले 21 जनवरी 2008 को बिल्कीस बानो सामूहिक दुष्कर्म मामले में 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई जिसे बंबई उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ने भी बरकरार रखा।

बिल्कीस बानो सामूहिक बलात्कार मामले के सभी 11 दोषियों को पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था। वे गोधरा उप-कारागार में बंद थे और 15 वर्षों से अधिक समय से जेल में थे।

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