नक्सलवाद की चुनौती

Amrit Vichar Network
Published By Vikas Babu
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छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में बारूदी सुरंग विस्फोट में जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) के 11 जवान शहीद हो गए। नक्सलियों की यह कायराना हरकत बेहद परेशान करने वाली है। सुरक्षा बलों पर हमला कर नक्सलियों ने संदेश देने की कोशिश की है कि उनके हौसले कमजोर नहीं हैं। बल्कि उनके विरुद्ध चलाए जा रहे विभिन्न अभियानों की वजह से  ताकत बढ़ी है।

सवाल है कि नक्सलियों से निपटने की रणनीति कारगर साबित क्यों नहीं हो रही हैं। सुरक्षा बलों को अरनपुर थाना क्षेत्र में माओवादी कैडर की उपस्थिति की सूचना मिली थी। दंतेवाड़ा से डीआरजी बल को नक्सल विरोधी अभियान में रवाना किया गया। सर्च अभियान से वापसी के दौरान माओवादियों ने मार्ग पर बारूदी सुरंग में विस्फोट कर दिया। गौरतलब है कि डीआरजी में राज्य पुलिस के स्पेशल जवान हैं।

इन्हें केवल नक्सलियों से लड़ने के लिए ही भर्ती किया गया है। नक्सलियों के विरुद्ध बड़ी सफलता अब तक इन्ही जवानों को मिली है। लगता है कि नक्सलियों के खिलाफ चलाए जाने वाले अभियानों में कहीं न कही कमियां रह जाती हैं। नक्सलियों के मजबूत खुफियातंत्र के आगे सरकारी तंत्र बौना साबित हो  रहा है।

इसी के चलते नक्सली सुरक्षा बलों को घेरकर उन्हें नुकसान पहुंचा देते हैं। भारत में नक्सली हिंसा की शुरुआत वर्ष 1967 में पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग ज़िले के नक्सलबाड़ी गांव से हुई थी। नक्सलबाड़ी गांव के नाम पर ही उग्रपंथी आंदोलन को नक्सलवाद कहा गया। नक्सलवाद के उभार के आर्थिक कारण भी रहे हैं। नक्सली सरकार के विकास कार्यों के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करते हैं। वे आदिवासी क्षेत्रों का विकास नहीं होने देते और उन्हें सरकार के खिलाफ भड़काते हैं। 

एक तरफ जहां इस समस्या की वजह आर्थिक और सामाजिक विषमता समझी जाती रही है, वहीं दूसरी ओर इसे अब एक राजनीतिक समस्या भी समझा जाने लगा है। राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा के लिए नक्सलवाद सबसे बड़ी चुनौती है। नक्सलवाद को कुचलने के लिए सभी सरकारों को तत्काल कड़े कदम उठाने की जरूरत है। कानून-व्यवस्था की समस्या से ऊपर उठकर स्थानीय नागरिकों की मूलभूत समस्याओं को दूर करने के प्रयास करने चाहिए।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा भी है कि लड़ाई अंतिम दौर में चल रही है और योजनाबद्ध तरीके से नक्सलवाद को समाप्त किया जाएगा। सरकारें वामपंथी चरमपंथ से प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे, कौशल विकास, शिक्षा, ऊर्जा और डिजिटल कनेक्टिविटी के विस्तार पर मिलकर काम भी कर रही हैं। परंतु जब तक कमजोर कड़ियों को दुरुस्त करने की कोशिश नहीं की जाएगी, इस समस्या पर काबू पाना कठिन बना रहेगा।