प्रयागराज : बिना ठोस आधार के अंतरिम जमानत की स्वतंत्रता को रद्द करना अनुचित

Amrit Vichar Network
Published By Pradumn Upadhyay
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अमृत विचार, प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतरिम जमानत के दौरान पीड़िता को धमकाने के आरोपी की जमानत रद्द करने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने पीड़िता द्वारा दाखिल जमानत रद्द करने की याचिका को अस्वीकार करते हुए कहा कि हाईकोर्ट अग्रिम जमानत के आदेश की समीक्षा करने के लिए अपीलीय अदालत की भूमिका नहीं निभा सकता है। इसके अलावा अंतरिम जमानत को तभी रद्द किया जा सकता है, जब आरोपी ने जमानत द्वारा उपलब्ध स्वतंत्रता या सुरक्षा का दुरुपयोग किया हो या किसी तथ्य से यह सिद्ध होता है कि आदेश मनमाना या विकृत या अधिकार क्षेत्र के बिना पारित किया गया है, लेकिन मौजूदा मामले में याची उक्त तथ्यों को सिद्ध करने में असफल रही है।

मालूम हो कि याची द्वारा दिए गए तर्कों के अनुसार आरोपी ने अंतरिम जमानत के दौरान 4 व्यक्तियों के साथ पीड़िता का पीछा किया और उसे सुनवाई पर निचली अदालत में जाने से रोकने की धमकी दी, जिसकी शिकायत पीड़िता ने कानपुर नगर के पुलिस आयुक्त और संबंधित सत्र न्यायाधीश के समक्ष की थी। वर्ष 2022 में जाजमऊ थाना, कानपुर नगर में आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज प्राथमिकी के अनुसार पीड़िता जे़बा परवीन की शादी वर्ष 1985 में एक सिविल इंजीनियर से हुई थी, जो वर्ष 2014 से 2017 के बीच व्यवसाय के सिलसिले में सऊदी अरब चला गया था। पीड़िता वर्ष 2015 में आरोपी से मिली और पति के लौटने के बाद भी वह उससे मिलती रही।

पीड़िता का आरोप है कि 12 फरवरी 2018 को आरोपी उसके घर आया और कुछ नशीला पदार्थ पिलाकर बेहोशी की हालत में उसने पीड़िता के साथ दुष्कर्म किया और इस कृत्य का एक वीडियो तैयार किया, जिसे वायरल करने की धमकी देकर वह उसके साथ बार-बार दुष्कर्म करता रहा। शादी का झूठा आश्वासन देकर वह उसे जर्मनी ले गया और अपने दोस्तों तथा रिश्तेदारों के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर करता रहा। पीड़िता ने यह भी आरोप लगाया कि आरोपी की धोखाधड़ी के कारण उसने अपने बच्चों के साथ- साथ अपने पूर्व पति को भी खो दिया। सभी परिस्थितियों एवं तर्कों को समझने के बाद न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की एकलपीठ ने अग्रिम जमानत देने वाले निचली अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए पर्याप्त आधार ना पाते हुए जमानत रद्द करने की पीड़िता द्वारा दाखिल याचिका को खारिज कर दिया।

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