बरेली: दुधारू पशुओं में मीथन का उत्सर्जन घटाएगा मेट-लो
शिवांग पांडेय, बरेली, अमृत विचार। यह स्थापित तथ्य है कि दुधारू पशुओं की जुगाली के दौरान मीथेन गैस के उत्सर्जन से ग्लोबल वर्मिंग बढ़ती है। आईवीआरआई ( भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान) के वैज्ञानिकों ने ऐसा उत्पाद तैयार किया है जो पशुओं को खिलाने से उनके मीथेन उत्सर्जन के स्तर को कम करेगा। इसे ''मेट-लो'' नाम दिया गया है।
आईवीआरआई के पशु पोषण विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एल सी चौधरी के अनुसार जुगाली करने वाले दुधारू पशु चारे को लंबे समय तक चबाने के दौरान काफी ऊर्जा का प्रयोग करते है जो मीथेन के रूप में वायुमंडल में प्रवेश करती है। हर पशु अपने चारे का करीब 10 प्रतिशत हिस्सा मीथेन के रूप में उत्सर्जित करता है जो ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारक है। मेट-लो खिलाने से पशुओं में मीथेन उत्सर्जन काफी कम हो जाता है। उन्होंने बताया कि यह उत्पाद लंबी रिसर्च के बाद इसी साल तैयार किया गया है। इस रिसर्च में डॉ. चौधरी के अलावा डॉ. अंजू काला, डॉ. विश्वबंधु चतुर्वेदी, डॉ. जागृति सिंह शामिल थीं।
हर्बल उत्पादों से तैयार किया गया मेट-लो
मेट-लो हर्बल उत्पाद है। डॉ. चौधरी के मुताबिक इसे मेंथा, पिपरमेंट ऑयल, सौंफ जैसी कई चीजों को मिलाकर नबाया गया है। इसकी 35-40 ग्राम मात्रा तीन से चार सौ किलो वजनी गाय-भैंस को दाना-पानी में मिलाकर देना काफी कारगर साबित हुआ। मेट-लो का पेटेंट कराने की प्रक्रिया शुरू की गई है। जल्द केरल की एक कंपनी की ओर से मेट-लो को मार्केट में लांच किया जाएगा।
शारीरिक वृद्धि और पाचन क्रिया पर भी असर, पशुपालकों के लिए फायदेमंद
डॉ. चौधरी ने बताया कि मीथेन पशुओं के पाचन क्रिया में भी अवरोधक का काम करती है। इससे उनकी शारीरिक वृद्धि कम होती है। उन्होंने बताया कि मेट-लो को आर्थिक कमजोर किसानों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इसकी कीमत सात रुपये प्रति पशु आएगी। मेट-लो नियमित रूप से पशुओं को देने से उनकी पाचन क्षमता भी बेहतर हुई है। इससे गोवंशीय पशुओं में दुग्ध उत्पादन और शारीरिक वृद्धि भी बेहतर होने के प्रमाण मिले हैं।
वायुमंडल में मीथेन की मात्रा ज्यादा होने पर ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ता है। संस्थान के वैज्ञानिकों ने मेट-लो बनाकर पर्यावरण संरक्षण के साथ मीथेन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में बेहतर उपलब्धि हासिल की है। - डॉ. त्रिवेणी दत्त, निदेशक आईवीआरआई
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