ईद-उल-अजहा : खुदा को प्यारी है कुर्बानी, मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में छाई रौनक
अयोध्या, अमृत विचार। ईद-उल-अजहा इस्लाम अनुयायियों का सबसे अहमियत और एहितराम वाला पर्व है। ईद-उल-अजहा को त्याग, बलिदान का पर्व भी कहा जाता है। गुरुवार को ईद-उल-अजहा का पर्व मनाया जाना है जिसे लेकर जिले भर में तैयारियां चल रही हैं। मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में पर्व को लेकर रौनक छाई हुई है। ईदगाह समेत विभिन्न मस्जिदों में ईद-उल-अजहा की नमाज अदा की जाएगी। इसे लेकर बुधवार को एसएसपी आर के नैय्यर ने ईदगाह और विभिन्न स्थलों का निरीक्षण किया।
मौलाना जफर अब्बास कुम्मी ने बताया अल्लाह के पैगम्बर हजरत इब्राहीम (अ०स०) को एक ख्वाब आया कि अपनी सबसे प्यारी चीज अल्लाह की राह में कुर्बान कर दो। खुदा के इस फरमान को पैगम्बर ने सर माथे से लगाया और अपने लख्ते जिगर नूरे नजर हजरत इस्माईल (अ०स०) को लेकर मीना घाटी (पहाड़ की ओर) चल दिए। उसी बीच शैतान आदमी के भेष में आकर उन्हें बरगलाने लगा कि आपके ‘अब्बू’ (पिता) खुदा की राह में आपकी कुर्बानी देने ले जा रहे हैं तो हजरत इस्माईल (अ०स०) ने कहा कि यह सच है तो इससे अच्छा और क्या है। हजरत इस्माईल ने पूरी बात अपने पिता से बताया तो उन्होंने कहा कि वह शैतान है। जब हजरत इब्राहीम (अ०स०) हजरत इस्माईल (अ०स०) को लेकर मीना की घाटी में पहुंचे तो अपने लख्ते जिगर से कहा कि ऐ बेटे अल्लाह का हुक्म है कि मैं तुझे उसकी राह में कुर्बान कंरू। हजरत इस्माईल (अ० स०) ने हंसकर कहा कि बेशक अब्बा जान मेरे लिए इससे बड़ी खुश किस्मती और क्या हो सकती है।
मौलाना ने बताया कि हजरत इस्माईल की वसीयत के मुताबिक जब पैगम्बर हजरत इब्राहीम (अ०स०) अपनी आंख पर पट्टी बांधकर छुरी चलाई तो वहां करिश्माए खुदा बंदी हुआ कि हजरत इस्माईल की जगह ‘दुम्बा’ हलाल हो गया। हजरत इब्राहीम की अल्लाह के हुक्म पर बेटे को कुर्बान कर देने की यह अदा खुदा को पसंद आई, और कुर्बानी वाजिब करार दिया।
हर मालदार पर वाजिब है कुर्बानी
मदरसा इमाम-ए-आजम अबू हनीफा के चेयरमैन मौलाना जाहिद अली नूरी कहते हैं कि कुर्बानी हर मालदार व्यक्ति पर वाजिब है। कुर्बानी करना बेहद सवाब है। हदीस का हवाला देते हुए बताते हैं कि एक मर्तबा सहाबा-ए-कराम ने हुजूर से पूछा कि कुर्बानी क्या है तो आपने फरमाया कि आपके दादा हजरत इब्राहीम (अ० स०) की सुन्नत है कुर्बानी। फिर सहाबा ने सवाल किया कि इससे सवाब कितना है तो आपने बताया कि जानवर के हर बाल के बदले एक नेकी मिलती है। तभी से बकरे का प्रतीकात्मक कुर्बानी देने का सिलसिला चल पड़ा है।
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