Kanpur: दुर्लभ वाद्ययंत्रों से चितेरे इंद्रमोहन रोहतगी ने बना दिया संग्रहालय, रुद्रवीणा देखते ही याद आ जाएंगे संगीत के देवता शिवजी

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Published By Nitesh Mishra
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कानपुर में दुर्लभ वाद्ययंत्रों से चितेरे इंद्रमोहन रोहतगी ने बना दिया संग्रहालय।

कानपुर में दुर्लभ वाद्ययंत्रों से चितेरे इंद्रमोहन रोहतगी ने संग्रहालय बना दिया। रुद्रवीणा देखते ही संगीत के देवता शिवजी याद आ जाएंगे।

कानपुर, [महेश शर्मा]। भारतीय संगीत में वह सामर्थ्य और क्षमता है जिसके चलते वह न केवल देश में बल्कि समूची दुनिया के दिल में अपनी सरगम एवं भावों का प्रभाव डालती है। ऐसे समय में जब संगीत अपनी डिजिटल यात्रा कर रहा हो और स्क्रीन के माध्यम इंटरैक्टिव हो तो दुर्लभ भारतीय वाद्ययंत्रों का संग्रहालय आपको संगीत की दुनिया विचरने का दिली माहौल उत्पन्न कर देता है।

ऐसा ही संग्राहलय कानपुर के यूनाइटेड पब्लिक स्कूल सिविल लाइन परिसर में रोहतगी संग्रहालय के नाम से मौजूद है जहां वाद्ययंत्रों का संग्रह देखकर आप अभिभूत हो उठेंगे। विभिन्न संगीत वाद्ययंत्रों के इस संग्रहालय में तब आप और भी आनंदित हो उठेंगे जब इनमें किसी वाद्ययंत्र पर 78 वर्षीय इंद्रमोहन रोहतगी की उंगलियां थिरक रही हों और संगीत की ध्वनि आपके कानों में मिश्री घोल रही हों। 

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खास बात तो यह है कि संगीत प्रेमी रोहतगी ने वाद्ययंत्रों पर लगभग 70 से 75 लाख रुपया खर्च किया है। यही नहीं इस संग्रहालय को वह विस्तार भी दे रहे हैं। तमाम कला और संगीत की तमाम दुर्लभ चीजों को जुटाकर संग्रहालय में रखने का काम वह कर रहे हैं। स्कूल के गेट से घुसते ही दायीं ओर वाद्ययंत्रों की गैलरी में आप प्रवेश करते हैं तो सामने रुद्रवीणा के दर्शन हो जाते हैं और आपके मस्तिष्क पटल पर भगवान शिव की तस्वीर रुद्रवीणा बजाते हुए ताजा हो उठेगी।

रुद्रवीणा के कारण ही शिवजी को संगीत का देवता कहा जाता है। पंडित रविशंकर ने जब बीटल्स एलबम के लिए सितार बजाया तो उन्हें विश्वव्यापी ख्याति मिली और वहीं से भारतीय संगीत के नये अध्याय का शुभारंभ हुआ। रोहतगी कहते हैं कि ऐसे में यदि संग्रहालय के माध्यम दुर्लभ वाद्ययंत्रों को लोगों को दिखा दें तो कानपुर में संगीत पर्यटन का नया अध्याय शुरू हो जाएगा। यहां पर एक से एक ख्यातिप्राप्त कलाकार हुए हैं। वाद्ययंत्रों से परिचय कराना एक रोचक कार्य होगा।  

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यह उत्तर प्रदेश का अनोखा इकलौता संग्रहालय हैं जहां पर रखे दर्जनों वाद्ययंत्र भारतीय संगीत की प्राचीन परंपरा को दर्शाते हैं। हालांकि यहां पर कुछ वाद्ययंत्र 17वीं से 19वीं शताब्दि के हैं तो कुछ उससे भी काफी पहले के हैं। इंद्रमोहन रोहतगी कहते हैं कि संगीत उनका जुनून है। वह चाहते हैं कि संगीत वाद्ययंत्रों का ऐसा संग्रहालय आने वाली पीढ़ी के लिए छोड़ जाएं वह देश की कला संस्कृति सभ्यता को भुलाए न भूल सके।

रोहतगी संग्रहालय में सरोद, वीणा, मोहन वीणा, सारंगी, खड़ताल, नाल, ढोलक, सिंधी सारंगी, नगाड़ा, सितार, प्यानो एकारिडयन, बैंजो आदि दर्जनों ऐसे वाद्ययंत्र हैं जिनसे आकर्षित हुए बिना कोई नहीं रह सकता। रोहतगी कहते हैं कि भारतीय संगीत की कई समृद्ध परंपराएं हैं जिनका परचम दुनिया में फहरा रहा है।

प्राचीन काल से इन परंपराओं के भारतीय संगीतकारों ने अपनी शैली के अनुरूप पारंपरिक और देशज वाद्ययंत्रों का अनुसंधान कर उन्हें बजाया। इसीलिए भारत के वाद्ययंत्रों की समृद्ध विरासत है जो सांस्कृतिक परंपराओं का अभिन्न अंग है। इस संग्रहालय को ऐसा आकर्षक स्वरूप देना की योजना है जहां पर कला और संस्कृति की दुर्लभ वस्तुएं लोगों को देखने को मिलें।

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