चित्रकूट: दूसरी बार जिलाध्यक्ष बनने वाले पहले भाजपाई बने लवकुश

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Published By Deepak Mishra
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चित्रकूट, अमृत विचार। आखिरकार कयासों का दौर खत्म हुआ। लवकुश चतुर्वेदी को भारतीय जनता पार्टी की जिले की कमान थमा दी गई। वह दूसरी बार जिलाध्यक्ष बनाए गए हैं। वह वर्तमान में बुंदेलखंड विकास बोर्ड के सदस्य हैं। लवकुश जिले में भाजपा के उन गिनेचुने नेताओं में शुमार किए जाते हैं, जिनकी सबसे बनती है या वह सबसे बना लेते हैं। यहां तक कि दूसरी पार्टियों के नेताओं से भी उनके रिश्ते मधुर ही माने जाते हैं।

इसलिए उनके चाहने वाले उनको चाणक्य भी पुकारते हैं। पहाड़ी ब्लाक के रमयापुर गांव निवासी लवकुश का राजनीतिक जीवन वहीं के मंडल अध्यक्ष बनने से शुरू हुआ। वह जिला पंचायत का चुनाव लड़े पर पराजित हुए। इसके बाद 2007 में उनको जिलाध्यक्ष चुना गया। मार्कंडेय द्विवेदी, मदनगोपाल, भोलानाथ गुप्ता, लवकुश चतुर्वेदी (वर्तमान में भी), दिनेश तिवारी, जय विजय सिंह, अशोक जाटव, चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय और चंद्रप्रकाश खरे के बाद वह फिर जिलाध्यक्ष बने हैं। इस प्रकार लवकुश पहले भाजपाई हैं, जिनको पार्टी ने दुबारा जिले की कमान सौंपी है। 

अक्खड़ जिलाध्यक्ष की छवि बनाई थी
अपने पहले कार्यकाल के दौरान लवकुश चतुर्वेदी ने एक अक्खड़ और अपनी शर्तों पर चलने वाले जिलाध्यक्ष की छवि बनाई थी। लवकुश के बारे में तब बहुत सी बातें प्रचलित हैं, जिनके आधार पर उनके समर्थक यह दावा करते हैं कि लवकुश आम तौर पर किसी की नहीं बल्कि अपने मन की सुनकर काम करते हैं। 

जिले में हावी है एक गुट
पार्टी के तमाम नेता नाम छिपाते हुए दावा करते हैं कि पार्टी में जिला स्तर पर एक गुट बहुत सक्रिय रहता है। यह गुट पहले तो निर्वतमान जिलाध्यक्ष के लिए लामबंदी कर रहा था पर जैसे ही इसे भान हुआ कि इस पर शीर्ष नेतृत्व कतई तैयार नहीं होगा तो उसने पाला बदल लिया। पार्टी के नेताओं का यह भी कहना है कि अगर यही हाल रहा तो आने वाले चुनाव में पार्टी को यह गुटबाजी भारी पड़ सकती है।

इसके उदाहरण में ये नेता विधानसभा चुनाव का जिक्र करते हैं और आरोप लगाते हैं कि ये लोग चित्रकूट की बजाय मानिकपुर विधानसभा क्षेत्र में ज्यादा सक्रिय रहे, जिस वजह से तब के सिटिंग विधायक और राज्यमंत्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय को सपा के नए नवेले अनिल प्रधान से करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। 

कठिन थी इस बार की दावेदारी
इस बार भाजपा जिलाध्यक्षी की दावेदारी ज्यादा प्रतिस्पर्द्धात्मक थी। इसकी वजह यह कि अगले साल लोकसभा चुनाव हैं और ऐसे में जिलाध्यक्ष का पद महत्वपूर्ण हो जाता है। हालांकि 'अमृत विचार' ने अपने तीन सितंबर के अंक में प्रकाशित समाचार, जल्द ही भाजपा को मिल सकता है नया जिलाध्यक्ष, में इस बात की संभावना पहले ही जता दी थी कि भावी नेतृत्व लवकुश चतुर्वेदी ही हो सकते हैं, क्योंकि दौड़ में उनका नाम शीर्ष पर है।

2024 में प्रचंड बहुमत है प्राथमिकता- लवकुश
जिलाध्यक्ष बनने के बाद लवकुश ने कहा कि उनकी प्राथमिकता 2024 के चुनाव में पार्टी को प्रचंड बहुमत से जिले में विजयी बनाना है। संगठन और सत्ता एक दूसरे के पूरक होते हैं। वह पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं को घरों से बाहर निकालकर बड़ी जिम्मेदारी देंगे। वैसे तो पार्टी में किसी की उपेक्षा नहीं होती पर अगर किसी कार्यकर्ता की उपेक्षा हुई है तो उसे उसका अधिकार और महत्व देंगे।

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