नेपालियों का पनहगार बना रायबरेली, तिब्बत वाया नेपाल से जुड़े चीन के तार, सुरक्षा व्यवस्था पर मंडराया खतरा!

Amrit Vichar Network
Published By Sachin Sharma
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रायबरेली। रायबरेली में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर प्रशासन और पुलिस दावे करती है लेकिन अपराध होते हैं। इन सब के इतर एक बड़ी समस्या नेपाल से आने वाले लोगों की है। नेपाल से बड़ी संख्या में लोग शहर से लेकर कस्बों में रह रहे हैं और उनकी कोई सूची न एलआईयू के पास है और न ही प्रशासन के पास। ऐसे में सुरक्षा पर बड़ा सवाल है।

खास बात यह है कि पुलिस प्रशासन ने कभी भी इसे लेकर पड़ताल करने की जरूरत नहीं समझी। शहर में हाल यह है कि ऊनी बाजार के साथ फास्ट फूड सेंटर केवल नेपाल के वाशिंदे चला रहे हैं। खास बात यह है कि शहर में तिब्बत ऊनी कपड़ों का बाजार लगा रहा है और रायबरेली में सारा सामान तिब्बत से होकर नेपाल तक लाया जाता है, फिर वह रायबरेली पहुंच रहा है। ऐसे में तिब्बत के भी लोग नेपाल के रास्ते पहुंच जाते हैं। अब यह तिब्बती चीन से ताल्लुक रखते हैं कि नहीं। इसकी कोई पड़ताल नहीं है और यही कमजोर कड़ी कहीं न कहीं घातक है।

रायबरेली शहर पिछले एक दशक से नेपाली लोगों का ठिकाना बना हुआ है। सर्दी के समय तिब्बती ऊनी बाजार से इनके जिले के कई जगहों पर बाजार लगते हैं। यह बाजार लगाने की स्वीकृति कौन देता है, इसका किसी के पास जवाब नहीं है। बाजार में खास तौर पर तिब्बती स्वेटर और गर्म कपड़ों का टैग लगा होता है जिससे साफ है कि नेपाल के रास्ते तिब्बत से यह माल लाया जाता है और फिर उसे सीमा पारकर रायबरेली तक लाया जाता है।

तिब्बत फिलवक्त चीन के कब्जे में है। वहीं नेपाल और चीन के बीच संबंध सही होने ने वहां के चीन के तिब्बत तक पहुंच जाते हैं। नेपाल में जो सरकार है वह चीन की कम्युनिस्ट मानसिकता पर आधारित है। ऐसे में नेपालियों का इस तरह तिब्बत से सामान लाकर बेचना आंतरिक सुरक्षा के लिए कहीं न कहीं खतरा करता है। शहर में जितने भी फास्ट फूड सेंटर हैं उनका स्वामित्व नेपाली लोगों के पास है। इनको फूड स्टाल लगाने का लाइसेंस बिना किसी जांच पड़ताल के खाद्य सुरक्षा विभाग से मिल जाता है। इस पर विभाग के अधिकारियों का कहना है कि लाइसेंस मांगा जाता है तो दिया जाता है। अब पड़ताल करना प्रशासन का काम है। 

दो हजार से अधिक नेपाली जिले में बनाए हैं आमद 

जिले में नेपाली नागरिक कितनी संख्या में है इसकी जानकारी लोकल इंटेलीजेंस ब्यूरो के पास भी नहीं है। ब्यूरो ने कभी भी इस पर जानकारी करने और पड़ताल की जरूरत नहीं समझी है। नेपाली लोग मुख्य रूप से शहर, मुंशीगंज, ऊंचाहार, सलोन, महराजगंज, आमावां, लालगंज में रह रहे हैं। शहर में इन दिनों तिब्बती बाजार लगा है। यह बाजार किसकी स्वीकृति से लगाया गया है इसकी किसी के पास कोई जानकारी नहीं है। सूत्रों की माने तो जिले में करीब 2 हजार से अधिक नेपाल अस्थाई तौर से रह रहे हैं। 

मकानमालिक नहीं देते जानकारी

नेपाली लोग शहर हो या फिर कस्बा, किराए के मकान में रहते हैं। खास बात यह है कि नियम के बावजूद मकान मालिक इनकी कोई जानकारी थाने और कोतवाली में नहीं देते हैं। जिस कारण नेपाली बिना किसी डर के यहां रह रहे हैं। नेपाल के रास्ते शहर में मादक पदार्थों की बिक्री का भी खेल होता है। इसे पुलिस भी अच्छी तरह जानती है लेकिन कार्रवाई नहीं की गई है। इधर लगातार गांजा के तस्कर पकड़े गए हैं। इसका संबंध नेपाल से रहा है। जिससे कहीं न कहीं मादक पदार्थों की तस्करी में भी नेपाल का कनेक्शन होने की संभावना है। 

बांग्लादेशी टोपी की भी शहर में होती बिक्री 

शहर के सुपर मार्केट के पास दुकानों में टोपी बिकती हैं। खास बात यह है कि टोपियों में मेड इन बांग्लादेश का टैग लगा रहता है। सोचना वाली बात यह है कि मेड इन बांग्लादेश टैग की टोपी शहर में कहां से आ रही हैं। कानपुर, लखनऊ, दिल्ली तक में मेड इन बांग्लादेश टैग की टोपी नहीं मिलती है जबकि शहर में यह मिलती है। इस पर कभी कोई छानबीन नहीं की गई।

नेपाल से भारत के फ्रेंडली रिलेशन हैं तथा वहां के नागरिकों का यहां पर आने की छूट है। रही बात चेकिंग की तो उसकी जानकारी नेपाल-भारत सीमा पर चौकी में जरूर होगी। यही कारण है कि जिले में पहचान की सूची नहीं बनाई जाती है। 
                                                                                                  नवीन कुमार सिंह, एएसपी, रायबरेली।

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