चुनावी अतीत : 1962 में निर्दलीय मुजफ्फर हुसैन को सौंपी थी लोकसभा की कमान
साल 1952 और 57 में कांग्रेसी सांसद जीते और तीसरे चुनाव में निर्दलीय को मौका
आशुतोष मिश्र,अमृत विचार। वैश्विक पटल पर पीलनगरी की पहचान रखने वाला मुरादाबाद राजनीति में नए प्रयोग और बदलाव का अनुभव भी रखता है। विविध शोर में राजनैतिक पैंतरे की चुप्पी भी है। जिसका प्रमाण यहां देश के तीसरे चुनाव में दिखा था। देश में कांग्रेस की आंधी के बाद भी यहां के उम्मीदवार को पटखनी दे दी गयी। मजेदार तो यह कि क्षेत्र की जनता ने निर्दलीय सैय्यद मुजफ्फर हुसैन को संसद के लिए चुन लिया। उन्होंने निर्दलीय सांसद के रूप में क्षेत्र के लोगों की आवाज बुलंद की।
देश अब अगले आम चुनाव के मुहाने पर खड़ा है। सत्रहवीं लोक सभा के गठन के लिए सात चरणों में मतदान हुआ था। साल 2019 में 11 अप्रैल से 19 मई के बीच लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था जिसमें, यहां सपा गठबंधन के उम्मीदवार डा.एसटी हसन ने भाजपा के कुंवर सर्वेश सिंह से सीट छीन ली थी। अब चुनाव के दिन नजदीक आने के साथ ही चौपालों पर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। आम आदमी, कारोबारी, युवा और किसान भी इस विषय पर बहस में शामिल होने लगे हैं। चुनाव कब होंगे और किस दल का चेहरा कौन होगा? यह बात तो अभी भविष्य की गर्भ में है। क्षेत्र की जनता ने लोकतंत्र के उत्सव में उल्लास के साथ हिस्सा लिया है, राजनीति के पन्नों पर इस बात के साफ- साफ संकेत दिखायी दे रहे हैं।


शहर से लेकर देहात तक कुशल श्रमिक और कारोबारी इस माटी की पहचान हैं। अब तो दुनिया के बाजारों में यहां के निर्यात की गहरी दखल है। स्वाभाविक बात है कि उसके बाद ही यहां का हुनर और कुशल श्रमिकों की दस्तकारी का डंका बज रहा है। लेकिन, अगर राजनीति के पैमानों की चर्चा करें तो यह बात स्पष्ट हो रही है कि अपने अधिकार और प्रतिनिधित्व को लेकर यहां का मतदाता हमेशा जागरुकता का परिचय देता रहा है। संभव है कि उसी वजह से तीसरे आम चुनाव में किसी राजनैतिक उम्मीदवार को पंसद न करके निर्दलीय को दिल्ली की जिम्मेदारी सौंप दी।
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