कासगंज: 50 लाख की राशि पर जेठ की बिगाड़ी नीयत, कोर्ट ने दिया शहीद की विधवा को 10 दिन में भुगतान करने का आदेश
कासगंज, अमृत विचार: पति शहीद हो गए। उनके बैंक खाते में जेठ नॉमिनी है। पति की डेथ क्लेम की 50 लख रुपए की धनराशि बैंक में आई जो जेठनॉमिनी होने के कारण कभी भी निकाल सकते हैं और धनराशि निकालकर हमें नहीं दे रहे। बैंक भी फरियाद नहीं सुन रही। हार थक गई विधवा तो स्थाई लोक अदालत का सहारा लिया।
स्थाई लोक अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुना और विधवा के पक्ष में एक पक्षीय निर्णय सुना दिया। बैंक को आदेशित किया कि 10 दिन के अंदर शहीद के खाते में आई 50 लाख रुपए की धनराशि ब्याज सहित जमा कर दें। अन्यथा वादी को विधिक तरीके से धनराशि वसूलने का अधिकार होगा। मामला कासगंज कोतवाली क्षेत्र के गांव मोहनपुरा से जुड़ा हुआ है।
भारतीय सेना में उत्तराखंड में तैनात मोहनपुरा के राघवेंद्र पांच अक्टूबर को बीते साल शहीद हो गए। लगभग एक पखवाड़े बाद उनका शव मिला। वमुश्किल उनके शव की शिनाख्त हुई। उसके बाद शहीद के खाते में डेथ क्लेम की धनराशि आई। शहीद के एसबीआई खाते में आश्रित उनके बड़े भाई रामेंद्र सिंह हैं, क्योंकि उनके तीन बच्चे नाबालिक है और शादी से पहले ही उन्होंने जब खाता खुलवाया तो बड़े भाई को नॉमिनी बनाया।
शहीद की मौत के बाद तीन नवंबर को खाते में 50 लाख रुपये की डेथ क्लेम धनराशि आई, लेकिन खाते में जेठ नॉमिनी है तो शहीद की विधवा को धनराशि निकाल कर नहीं दे रहे थे। विधवा ने अपने जेठ से अनुरोध किया तब भी उन्होंने अनसुनी कर दी। विधवा ने बैंक का सहारा लिया। खाते से भुगतान पर रोक लगाए जाने का अनुरोध किया और स्वयं के हित में भुगतान करने का दावा किया, लेकिन बैंक ने नियमों का हवाला दे दिया।
इसको लेकर विधवा ने स्थाई लोक अदालत ने पूरा पक्ष सुना और शहीद की विधवा का पक्ष दमदार माना। लोक अदालत के अध्यक्ष चंद्रशेखर प्रसाद, सदस्य बसंत कुमार एवं डॉ. सपना अग्रवाल ने संयुक्त रूप से फैसला सुनाया। शहीद की विधवा और बच्चों के हित को देखते हुए एक पक्षीय आदेश दिया है।
बैंक के प्रबंधक को स्पष्ट आदेश दिए हैं कि 50 लाख रुपए की डेथ क्लेम की धनराशि ब्याज सहित स्थाई लोक अदालत के खाते में जमा करें, जिससे शहीद की धनराशि का भुगतान विधवा को दिया जा सके। यदि भुगतान न किया तो पीड़िता को विधिक तरीके से अधिकार होगा।
बैंक ने रखा पक्ष: स्थाई लोक अदालत में बैंक के अधिकारियों ने अपना पक्ष रखा। कहा कि हमने खाते से भुगतान पर रोक लगा दी है और अदालत के निर्णय का हर हाल में पालन करेंगे।
शहीद का भाई बैंक खाते में आश्रित है, लेकिन शहीद की पत्नी को धनराशि नहीं दे रहे थे
स्थाई लोक अदालत ने दोनों पक्षों को सुना। विधवा का पक्ष सही था। इसलिए निर्णय सुनाया गया है।- बसंत शर्मा, सदस्य सस्थाई लोक अदालत
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