गर्भावस्था के दौरान एनीमिया-कुपोषण की अनदेखी, बन रही जान के लिए खतरा, महिलाएं इन बातों को जरूर रखें ध्यान
क्वीनमेरी में ऐसे कई मामले आ रहे हैं। लापरवाही से जच्चा-बच्चा की जान जोखिम में पड़ रही
लखनऊ, अमृत विचार : मलिहाबाद की रहने वाली 35 वर्षीय महिला विवाह के आठ साल के लंबे इंतजार के बाद गर्भवती हुईं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में उनका प्रसव हुआ, लेकिन प्रसव के कुछ ही देर बाद उन्हें गंभीर प्रसवोत्तर रक्तस्राव (पोस्ट पार्टम हैमरेज-पीपीएच) होने लगा। सीएचसी में तत्काल प्रबंधन का प्रयास किया गया, पर रक्तस्राव नियंत्रित न होने पर उन्हें क्वीन मेरी अस्पताल रेफर किया गया। समय पर इलाज मिलने से उसकी जान बच सकी। उनकी हालत स्थिर हो सकी। ऐसे कई मामले क्वीनमेरी में आ रहे हैं। लापरवाही के चलते जच्चा-बच्चा की जान खतरे में पड़ जाती है।
क्वीन मेरी अस्पताल की वरिष्ठ स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. सुजाता देव ने बताया महिला पूरी गर्भावस्था एनीमिया और कुपोषण की चपेट में थी। वजन कभी 34 किलो से अधिक नहीं हुआ और हीमोग्लोबिन का स्तर अधिकतम 10.2 ग्राम/डीएल रहा। इसके बावजूद उन्होंने नियमित रूप से आयरन-फोलिक एसिड (आईएफए), कैल्शियम और अन्य सप्लीमेंट्स का सेवन नहीं किया। प्रसूता का कहना था कि मुझे दवा खाना अच्छा नहीं लगता था। कोई परेशानी भी नहीं थी, घर का सारा काम कर लेती थी, इसलिए लगा कि दवा की जरूरत नहीं है।
दिखने में स्वस्थ होना, वास्तव में स्वस्थ होना नहीं
डॉ. सुजाता देव बताती हैं कि गर्भावस्था में घर के काम कर पाना या बाहर से स्वस्थ दिखना, स्वास्थ्य का भरोसेमंद पैमाना नहीं होता। एनीमिया, कुपोषण और कई संक्रमण ऐसे होते हैं जो दिखते नहीं, लेकिन मां और शिशु दोनों के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकते हैं। इसलिए नियमित प्रसवपूर्व जांच और जोखिम की समय पर पहचान बेहद जरूरी है।
एनीमिया क्यों बढ़ाता है पीपीएच का खतरा
डॉ. सुजाता के अनुसार गर्भावस्था में कम हीमोग्लोबिन से अत्यधिक थकान, संक्रमण, समय से पहले प्रसव और प्रसव के दौरान खून की कमी से खतरा बढ़ जाता है। एनीमिया गर्भाशय की मांसपेशियों की सिकुड़ने की क्षमता को कमजोर करता है, जिससे रक्तस्राव रुकने में देर होती है और हल्का रक्तस्राव भी जानलेवा बन सकता है। इसके आलावा मां में एनीमिया और कुपोषण का सीधा असर नवजात पर पड़ता है। इससे कम जन्म वजन, ऑक्सीजन की कमी (हाइपोक्सिया) और जन्म के बाद मृत्यु तक का खतरा बढ़ जाता है।
ये धारणा गलत
विशेषज्ञों के अनुसार दवाओं को लेकर गलतफहमियां, उल्टी-कब्ज जैसी शिकायतें, परिवार का दबाव और यह मिथक कि दवा से ''गर्मी'' होती है या बच्चा ज्यादा बड़ा हो जाएगा, इन कारणों से कई महिलाएं जरूरी सप्लीमेंट्स नहीं लेतीं। आसान प्रसव के लिए कम खाने की धारणा भी जोखिम को बढ़ा देती है।
ये जरुरी
नियमित प्रसवपूर्व जांच, आयरन-फोलिक एसिड व कैल्शियम का सेवन, संतुलित आहार, गर्भावस्था से जुड़े खतरों की पहचान और संस्थागत प्रसव। ये कदम मां और बच्चे दोनों की जान बचा सकते हैं।
