Exclusive News: अरविंद ने विलुप्त होती फुलवा आलू की प्रजाति को ऐसे बचा...इतने हजार रुपये बीघा शुद्व लाभ भी उठाया

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Published By Nitesh Mishra
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फर्रुखाबाद में अरविंद ने विलुप्त होती फुलवा आलू की प्रजाति को बचाया

फर्रुखाबाद, (चन्द्रपाल सिंह सेंगर)। खाने में लाजवाब और अमीरों की शान फुलवा आलू की विलुप्त होती प्रजाति को किसान अरविंद गंगवार ने बचाकर 30 हजार रुपये बीघा शुद्ध लाभ कमाया है।

मऊदरवाजा थानाक्षेत्र के गांव गुतासी के रहने वाले अरविंद गंगवार बताते है कि फुलवा आलू किसी समय बहुतायत से जिले में पैदा किया जाता था। किसानों ने अधिक पैदावार के चक्कर मे फुलवा आलू पैदा करना बंद कर दिया। नतीजतन इस आलू की प्रजाति विलुप्त होने के कंगार पर पहुंच गई। 

अरविंद गंगवार बताते है कि उन्होंने किसी तरह खोज कर 3 बीघा खेत मे इसकी गड़ाई कर दी। आलू तैयार करने में 14 हजार रुपया प्रति बीघा खर्च आया। एक बीघा खेत मे 40 पैकेट आलू पैदा हुआ। आलू तैयार होने के बाद वह कब इस आलू को मंडी समिति सातनपुर ले गए तो 1100रुपये प्रति पैकेट आलू उनका पहुंचते ही बिक गया। 

उनका कहना है कि अब लोग फोन करके उनसे आलू घर से खरीद कर ले जा रहे है। अरविंद बताते है कि यह आलू खाने में लाजबाब है। इससे अच्छा कोई अन्य आलू नही है। खास बात यह है कि इस आलू को शीतगृह में भंडारित करने की कोई जरूरत नही है।

घर मे बालू डाल कर इसे पूरी साल सुरक्षित रखा जा सकता है। अन्य आलू बीज में एक बीघा में 6 पैकेट पड़ता है।फुलवा आलू केवल एक बीघा में दो पैकेट बोया जाता है। अरविंद का कहना है कि अगली साल वह है दस बीघा  खेत में फुलवा आलू करेंगे। उनका कहना है कि फुलवा आलू किसी समय हर जवान पर रहता था लेकिन पैदावार कम होने की वजह से लोगों ने इसे बोना छोड़ दिया। 

इस बार एक बीघा खेत में 40 पैकेट आलू निकला है पैदावार भी अच्छी हुई है और उन्हें भाव भी अच्छे मिले हैं। सबसे खास बात यह है कि दम आलू और भुने हुए आलू खाने में फुलवा आलू का कोई जोड़ नहीं है। इस वजह से फुलवा आलू सबसे अच्छा माना जाता था।अरविंद बताते है कि अगली साल बहुतायत से किसान फुलवा आलू करने के लिए उनसे बीज बुक करा रहे है।

जिला आलू विकास अधिकारी रामनारायण वर्मा बताते हैं कि किसी जमाने में फुलवा आलू बहुतायत से किया जाता था । कम पानी और कम लागत में आलू तैयार हो जाता है। जिस समय फुलवा आलू तैयार किया जाता था उस समय जिले में शीत गृहों की संख्या ना के बराबर थी। किसान अपने घरों में ही इस आलू को सुरक्षित रखता था। इस आलू को आज भी बिना शीत गृह के सुरक्षित रखा जा सकता है। 

उनका कहना है कि अन्य प्रजातियों के मुकाबले इसकी पैदावार जरूर कम है लेकिन इसका खाने में स्वाद बेजोड़ है। और सबसे बड़ी बात यह हैं कि आलू में शर्करा की मात्रा न के बराबर है। जिससे शुगर के मरीज भी इस आलू को खा सकते हैं।

उन्होंने कहा कि किसानों को चाहिए कि इस खत्म होती प्रजाति को बचाने के लिए वह अगले साल अधिक से अधिक फुलवा आलू तैयार करें और अरविंद गंगवार की तरह एक बीघा में ₹30000 शुद्ध लाभ कमाए।

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