Special Story : आस्था का केंद्र है मां ललिता देवी मंदिर, दूर-दूर से माथा टेकने आते हैं भक्त

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Published By Bhawna
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पुत्र प्राप्ति के बाद मुंडन संस्कार कराते हैं परिजन, होली के बाद पहले मंगलवार से शुरू हो जाएगा मेला

गजरौला स्थित मां ललिता देवी मंदिर में बना मुंडन संस्कार भवन, मां ललिता देवी मंदिर

गजरौला (अमरोहा), अमृत विचार। शहर में स्थित मां ललिता देवी का मंदिर आस्था व श्रद्धा का केंद्र है। 187 वर्ष से इस प्राचीन मंदिर पर चैत्र माह में हर मंगलवार को आस्था का विशाल मेला लगता है। देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु माथा टेकने पहुंचते हैं। चमत्कारों के लिए विख्यात ललिता देवी के भक्त कई राज्यों से आते हैं। यह मंदिर मोहल्ला अवंतिका नगर में स्थित है। इसका इतिहास भी आजादी की जंग छिड़ने से पहले का बताया जाता है। होली के बाद पहले मंगलवार से मेला शुरू हो जाता है। महिलाएं अपने बच्चों का मुंडन संस्कार कराती हैं और प्रसाद चढ़ाती हैं। 

क्षेत्रवासियों के मुताबिक यह मंदिर 1837 में मेरठ के ग्राम जानीवलेनी (जो अब बागपत जिले में है) निवासी पंडा शिवसहाय ने सलेमपुर रियासत के राजा प्रभुवन से दान में जमीन लेकर स्थापित किया था। पंडा शिव सहाय मां ललिता देवी के भक्त थे। वह जानीवलेनी गांव के निकट बहने वाली हिंडन नदी के तट पर पूजा-पाठ कर परिवार का पालन-पोषण करते थे। एक दिन भजन संध्या के समय मां ललिता देवी ने दर्शन देकर गंगापार गज गढ़ में दरबार स्थापित करने को कहा। गज गढ़ द्वापर युग में राजा गज का क्षेत्र था जो बाद में गजरौला कहलाया। उस समय यह क्षेत्र सलेमपुर रियासत का भाग था। इसके राजा प्रभुवन गोस्वामी थे।

राजा प्रभुवन गोस्वामी ने माता दरबार को भूमि उपलब्ध कराते हुए मंदिर व पेयजल की व्यवस्था को कुआं बनवाया, जो आज भी मंदिर परिसर में है। आज मंदिर में मां काली, मां शेरा वाली, हनुमान व शिवलिंग की मूर्तियां स्थापित हैं। पंडा शिवसहाय अपने परिवार के साथ मंदिर की सेवा करने लगे। उनके देहांत के बाद मंदिर की सेवा व्यवस्था की कमान उनके पुत्र कन्हैयालाल ने संभाली। इसके बाद भगवती प्रसाद, बालमुकुंद, विशेश्वर दयाल शर्मा ने मंदिर की सेवा की।

पुजारी प्रदीप शर्मा व गौरव शर्मा ने बताया कि अब वह मंदिर की सेवा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मान्यता है कि माता के दरबार में मांगी जानी वाली हर मुराद पूरी होती है। श्रद्धालु पुत्र प्राप्ति की मुराद पूरी होने पर बच्चों का मुंडन भी यहीं कराते हैं। नवदंपती सफल वैवाहिक जीवन की मन्नत मांगते हैं। क्षेत्र के ही नहीं अपितु दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, बंगाल आदि राज्यों के भक्त भी मां के दरबार में माथा टेकने पहुंचते हैं। 26 मार्च को चैत्र मास का पहला मंगलवार है। यहां चैत्र के प्रत्येक मंगलवार को मेला लगता है।

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