परिवार को गरीबी और आश्रयहीनता से बचाने का एक ठोस उपाय भरण-पोषण कानून: हाईकोर्ट
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प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भरण पोषण से जुड़े एक मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि एक सक्षम युवा से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी पत्नी और बच्चे का उचित रूप से भरण पोषण करें। उसके द्वारा दिया गया यह तर्क स्वीकार्य नहीं हो सकता है कि वह इतना कमाने की स्थिति में नहीं है कि पारिवारिक मानक के अनुसार अपने परिवार का भरण पोषण कर सके।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि आश्रित पत्नियों और बच्चों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए भरण पोषण कानून सामाजिक न्याय के एक उपाय के रूप में अधिनियमित किया गया है, जिससे उन्हें गरीबी और आश्रयहीनता से बचाया जा सके। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह (प्रथम) ने पुनरीक्षणकर्ता राणा प्रताप सिंह की याचिका खारिज करते हुए की।
उसकी मासिक आय लगभग 65000 है। पुनरीक्षणकर्ता के तर्क पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा कि आयकर के रूप में केवल अनिवार्य वैधानिक कटौती को सकल वेतन से कम किया जा सकता है, इसके अलावा एलआईसी, गृह ऋण, जमीन खरीदने के लिए ऋण के भुगतान की किश्तों या बीमा पॉलिसी के प्रीमियम के भुगतान पर होने वाली कटौती पर कोई विचार स्वीकार्य नहीं है।
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