अलग वार्ड के छात्रों का प्रवेश निरस्त करना अनुचित :हाईकोर्ट
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक निजी विद्यालय में एडमिशन के लिए अपनी प्राकृतिक अभिभावक मां के माध्यम से बच्चे द्वारा दाखिल याचिका पर विचार करते हुए कहा कि "नेबरहुड स्कूल" की मूल अवधारणा आरटीई अधिनियम के तहत निर्धारित कोटा के अधीन स्कूलों के निकट निवास वाले अधिकतम बच्चों को समायोजित करना है, जिससे उनके लिए आने-जाने की यात्रा सुविधाजनक हो, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि स्कूल से दूर रहने वाला छात्र आवेदन नहीं कर सकता। पड़ोस के स्कूल की अवधारणा यह भी निर्धारित करती है कि अधिकतम छात्रों को उनके पड़ोस के स्कूलों में समायोजित किया जाए और इसके लिए राज्य सरकार ने नियम भी बनाए हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि ऐसे मामलों में एक ही वार्ड के छात्रों को प्राथमिकता दी जा सकती है और आरटीई अधिनियम के तहत निर्धारित कोटा के अनुसार सीटों की उपलब्धता के आधार पर विभिन्न वार्ड के छात्रों के आवेदन पर बाद में विचार किया जा सकता है। वार्ड शब्द का मतलब एक वार्ड में स्कूल की स्थापना के संबंध में है, न कि पड़ोस के बच्चों के एडमिशन से संबंधित है।
दरअसल याची बच्चे ने आर्यांस इंटरनेशनल स्कूल, मझौली की प्री-नर्सरी कक्षा में वंचित समूह के लिए आरक्षित 25 फीसदी कोटा के तहत प्रवेश के लिए आवेदन किया था। उसके आवेदन को खंड शिक्षा अधिकारी ब्लॉक, मुरादाबाद द्वारा गलत वार्ड होने के आधार पर खारिज कर दिया गया था। याची ने दावा किया कि वह जिला मुरादाबाद के वार्ड संख्या 15 का निवासी है जबकि उपरोक्त स्कूल वार्ड नंबर 16 में स्थित है। आवेदन की अस्वीकृति इस आधार पर थी कि वह पड़ोस के स्कूल में आवेदन करें। याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि याची का आवेदन पत्र गलत तरीके से खारिज कर दिया गया था।
अंत में कोर्ट ने विपक्षियों को याची के आवेदन पत्र पर विचार करने का निर्देश देते हुए कहा कि यदि संबंधित स्कूल में संबंधित वार्ड के सभी आवेदनों पर विचार करने के बाद भी प्रवेश प्रक्रिया पूरी होने से पहले सीटें उपलब्ध हैं और प्रवेश प्रक्रिया पहले ही समाप्त हो चुकी है तो याची को अगले शैक्षणिक सत्र में जाने की स्वतंत्रता होगी। इसके साथ ही कोर्ट ने प्रदेश सरकार को अगले शैक्षणिक सत्र से पहले उपरोक्त संदर्भित अस्पष्टता यानी एक वार्ड में एक छात्र का निवासी बनाम एक अलग वार्ड में स्थित पड़ोस के स्कूल का निवासी को स्पष्ट करें। उक्त आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने मास्टर अर्जित प्रताप सिंह की याचिका को निस्तारित करते हुए पारित किया।
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