Video: ट्रांसजेंडर को नहीं मिल पाता महिला और पुरुष की तरह इलाज, ट्रांस महिला डॉ. अक्सा ने बताया पूरा सच

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Published By Virendra Pandey
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लखनऊ, अमृत विचार। समय कितना भी आधुनिक क्यों न हो गया हो, लेकिन बहुत से लोगों के लिए यह आज भी नहीं बदला। ट्रांसजेंडर को आज के समय में भी महिला और पुरुष की तरह इलाज मिल पाना आसान नहीं है। स्वास्थ्य संबंधी उनकी स्थिति बहुत बुरी है। ट्रांसजेंडर के लिए बहुत से अस्पतालों में अलग से कोई व्यवस्था नहीं है।

समाज उन्हें आज भी स्वीकार नहीं करता। जिसकी वजह से गंभीर बीमार होने पर ट्रांसजेंडर को अपना इलाज खुद करना पड़ता है। पैसे की कमी भी उनके इलाज में बाधक बनती है। ट्रांसजेंडर का हेल्थ इंश्योरेंस नहीं हो पाता। यह कहना है ट्रांस महिला डॉ अक्सा शेख का। वह शुक्रवार को राजधानी स्थित किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम के दौरान अमृत विचार के साथ बात कर रहीं थीं।

दिल्ली स्थित जामिया हमदर्द में कम्युनिटी मेडिसिन की प्रो. (डॉ) अक्सा शेख ने बताया कि ट्रांसजेंडर समुदाय के जो व्यक्ति हैं। वह जब सरकारी अस्पताल में जाते हैं तो उनके साथ ऐसे सवाल पूछे जाते हैं, जिससे वह अपना इलाज कराने से ही कतराने लगते हैं। सरकारी अस्पतालों में अलग से कोई व्यवस्था न होने के कारण उनके लिए नाकारात्मक स्थिति होती है। पैसे की कमी के चलते ट्रांसजेंडर निजी अस्पताल में भी नहीं जा पाते। हालत यह है कि वह अपना हेल्थ इंश्योरेंस भी नहीं करा सकते। जिसके चलते वह खुद ही इलाज करने की कोशिश करते हैं या फिर झोलछाप के चक्कर में फंस जाते हैं। जिसके चलते गंभीर स्थित में उनका पहुंचना आम बात है।

डॉक्टरों को भी पता नहीं होता

डॉ. अक्सा शेख ने बताया कि मेडिकल और नर्सिंग की पढ़ाई में ट्रांसजेंडर के इलाज को लेकर चर्चा नहीं होती। जिसके चलते एक ट्रांसजेंडर को स्वास्थ्य सेवायें कैसे प्रदान की जाये। इसकी जानकारी डॉक्टरों के पास नहीं होती। इसके पीछे की वजह यह रही कि जब स्वास्थ्य सेवायें बनाई जा रहीं थी, तब ट्रांसजेडर को लेकर विचार नहीं किया गया।

नहीं होना चाहिए भेदभाव

डॉ.अक्सा ने बताया कि ट्रांसजेंडर के इलाज में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। साथ ही अस्पतालों में ट्रांसजेंडर व्यक्ति के इलाज के लिए अलग से व्यवस्था होनी चाहिए। जिससे उनका आसानी से स्वास्थ्य संबंधी कार्य हो सके। 

यह हुआ कार्यक्रम

17 मई को इन्टरनेशनल डे अगेंस्ट होमोफोबिया, बाईफोबिया एंड ट्रान्सफोबिया के रूप में मनाया जाता है ।  LGBTQ समुदाय के व्यक्तियों के प्रति समाज का नजरिया बदलने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। दरअसल, LGBTQ समुदाय के व्यक्तियों को लेकर बहुत सी भ्रान्तियां और पूर्वाग्रह व्याप्त है। समाज में उन्हें बराबरी का दर्जा नहीं मिल पाता है। समाज के बहुत से लोग उन्हें गलत या अलग समझते हैं । इसी समझ को और समाज के रवैये को बदलने के लिए  यह दिवस मनाया जाता है ।

वर्ष 2024 मे युनाइटेड नेशनल का टेग लाइन है "No One Left Behind" । इसी तहत आज सुरम्य लाईफ फाउंडेशन ने भारत स्थित कैनाडा उच्चायोग के सहयोग से  कलाम सेन्टर- केजीएमयू में एक CME ( continuous medical education)का आयोजन किया। जिससे चिकित्सा जगत से जुड़े प्रोफेशनल्स का ज्ञान वर्धन हो सके। इस CME का विषय था “EFFECTIVE PROTECTION OF ALL PERSONS FROM DISCRIMINATION BASED ON SEXUAL ORIENTATION OR GENDER IDENTITY”

CME की रूपरेखा तैयार करने और प्रस्तुतीकरण में केजीएमयू के मनोचिकित्सा विभाग, पैरामेडिकल विज्ञान संकाय, इन्डियन साइकेट्रीक सोसाइटी (उत्तर प्रदेश चेप्टर) और निर्वाण अस्पताल ने अहम भूमिका निभाई।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में केजीएमयू की कुलपति प्रोफेसर डॉ. सोनिया नित्यानंद रहीं। इस दौरान भारत स्थित कनाडा उच्चायोग के डिप्टी उच्चायुक्त स्टीवर्ट व्हीलर भी उपस्थित रहे। इस दौरान प्रोफेसर अमिता जैन, प्रोफेसर डॉ. प्रभात सिठोले, प्रो. आदर्श त्रिपाठी, डॉ. एससी तिवारी, प्रोफेसर विवेक अग्रवाल मौजूद रहे।

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