प्रयागराज: जेलों की अंधेरी दीवारों में संवैधानिक स्वतंत्रता का प्रकाश पहुंचाने का निर्देश
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्धन और असहाय कैदियों के लिए कानूनी सहायता उपलब्ध कराने के मामले में दिशा निर्देश देते हुए कहा कि देश आजादी के अमृत काल का जश्न मना रहा है। भारतीय नागरिकों का एक वर्ग ऐसा है जो जेलों की अंधेरी दीवारों में गुमनाम जीवन जी रहा है, जहां संवैधानिक स्वतंत्रता का प्रकाश प्रवेश नहीं कर पाता है।
कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा कि कानूनी सहायता की कमी विशेष रूप से गरीब और हाशिए पर पड़े कैदियों के लिए अक्सर लंबे समय तक हिरासत में रखने और उन्हें स्वतंत्रता से वंचित करने का कारण बनती है। इस मुद्दे को कोर्ट के समक्ष लगातार समय-समय पर उजागर भी किया गया है, लेकिन ज्ञान न होने के कारण ऐसे जरूरतमंद आरोपियों को समय पर कानूनी सहायता नहीं मिल पाती है।
कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 304 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 341 के तहत ट्रायल कोर्ट के कर्तव्य पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि निचली अदालत प्रत्येक कैदी को जमानत मांगने के अधिकार से अवगत कराए और जरूरतमंद आरोपियों को सक्षम कोर्ट के समक्ष जमानत आवेदन दाखिल करने के लिए उचित कानूनी सहायता प्रदान करें।
कोर्ट ने आगे यह भी स्पष्ट किया कि समय पर जमानत आवेदन दाखिल न करने से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कानूनी सहायता न मिलने के कारण कैदी जमानत के लिए उचित समय पर कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटा सका। ऐसी स्थिति में ट्रायल कोर्ट/ मजिस्ट्रेट, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण और जेल अधिकारियों का दायित्व है कि वह ट्रिगर इवेंट पर प्रत्येक कैदी की कानूनी सहायता की आवश्यकता को सक्रियतापूर्वक जांचें। यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकलपीठ ने रामू व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। कोर्ट ने अपने 90 पृष्ठ के आदेश में कैदियों के जमानत मांगने के अधिकार और कानूनी सहायता पाने के अधिकार के विभिन्न पहलुओं का सारांश दिया।
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