Prayagraj News : देश में साइबर अपराध एक मूक वायरस की तरह

अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साइबर क्राइम से जुड़े एक मामले में आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि हमारे देश में साइबर अपराध एक मूक वायरस की तरह है। इसने असंख्य निर्दोष पीड़ितों को प्रभावित किया है जो अपनी मेहनत की कमाई साइबर क्राइम के जाल में फंसकर गंवा बैठते हैं। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि भारत में प्रौद्योगिकी की तीव्र प्रगति और डिजिटल बुनियादी ढांचे को व्यापक रूप से अपनाने से फिशिंग घोटाले, रैनसमवेयर हमले, साइबर स्टॉकिंग और डाटा उल्लंघनों सहित साइबर अपराधों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिस पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की एकलपीठ ने निशांत राय की जमानत याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। याची के खिलाफ एक व्यक्ति को डिजिटल रूप से गिरफ्तार करने के मामले में आईपीसी की विभिन्न धाराओं तथा आईटी एक्ट की धारा 66-सी और 66-डी के तहत मामला दर्ज किया गया था। मालूम हो कि डिजिटल गिरफ्तारी में धोखेबाज वीडियो कॉल के माध्यम से कानून प्रवर्तन अधिकारी के रूप में व्यक्ति पर अवैध गतिविधियों का झूठा आरोप लगाकर उसे फर्जी गिरफ्तारी की धमकी देते हैं और उनसे पैसे मांगते हैं। मौजूदा मामले में पीड़िता (काकोली दास) को एक कूरियर कंपनी के प्रतिनिधि के रूप में किसी व्यक्ति ने कॉल किया और बताया कि पीड़िता के नाम से एक पार्सल ताइवान भेजा जा रहा है, जिसमें 200 ग्राम एमडीएमए सहित अवैध सामग्री है। बाद में यह कॉल खुद को अपराध शाखा का पुलिस उपायुक्त बताने वाले एक व्यक्ति के पास स्थानांतरित कर दी गई, जिसने डिजिटल रूप से पीड़िता को गिरफ्तार कर लिया और उसके बाद जांच के लिए उस पर अपने बैंक खाते का विवरण साझा करने का दबाव बनाने लगा।
इसके बाद तीन दिनों के भीतर साइबर अपराधियों ने आरटीजीएस के माध्यम से उनके बैंक खातों से कुल 1.48 करोड़ रुपए निकाल लिए। याची बीबीए के छठे सेमेस्टर का छात्र है। उसका तर्क है कि उसे जांच के दौरान झूठा फंसाया गया है। उसके खाते में कोई लेनदेन नहीं हुआ था। उसे केवल सह- अभियुक्तों के बयान के आधार पर फंसाया नहीं जा सकता है। याची 7 मई 2024 से जेल में निरुद्ध है, लेकिन उसके खिलाफ अभी तक आरोप तय नहीं किए गए हैं। याचिका का विरोध करते हुए सरकारी अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि पीड़िता एक वरिष्ठ नागरिक है और उससे लिए गए रुपयों में से 62 लाख रुपए संधू इंटरप्राइजेज के खाते में स्थानांतरित किए गए, जिसे सह-आरोपी अमरपाल सिंह और उसकी पत्नी द्वारा चलाया जाता है। याची से बरामद सिम संधू इंटरप्राइजेज के बैंक खाते से जुड़ा हुआ पाया गया, जिससे मामले में याची की संलिप्तता सिद्ध होती है। अंत में कोर्ट ने यह देखते हुए कि अन्य सह-आरोपियों के खिलाफ जांच अभी चल रही है और याची के खिलाफ आरोप अभी तक तय नहीं किए गए हैं, उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी।
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