प्रयागराज: नाम परिवर्तन के लिए राजपत्र अधिसूचना पर्याप्त नहीं, न्यायिक आदेश भी आवश्यक- हाईकोर्ट

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाईस्कूल में नाम परिवर्तन से जुड़े नियमों को स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत के राजपत्र में प्रकाशित एक राजपत्र अधिसूचना के आधार पर नाम परिवर्तन को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। यह पूरी तरह से राज्य की विधायी शक्ति के अधीन है।
कोर्ट ने माना कि निःसंदेह किसी व्यक्ति का नाम विभिन्न आंतरिक और बाह्य विशेषताओं का मिश्रण होता है। व्यक्ति का नाम उसकी पहचान को अभिव्यक्ति देता है। नाम बदलने के अधिकार को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता मिली है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के आलोक में यह कहा जा सकता है कि नाम परिवर्तन केवल राजपत्र अधिसूचना के आधार पर स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इसके लिए सिविल न्यायालय का आदेश और डिक्री अनिवार्य रूप से आवश्यक है।
उक्त आदेश मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने राज्य सरकार की विशेष अपील को स्वीकार करते हुए पारित किया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राजपत्र अधिसूचना और सिविल न्यायालय का आदेश अलग-अलग उद्देश्यों को पूरा करते हैं। यह सही है कि वे एक दूसरे के पूरक हैं, लेकिन एक के स्थान पर दूसरे से काम नहीं चलाया जा सकता है। राजपत्र अधिसूचना एक आधिकारिक प्रकाशन है।
अधिसूचना मुख्य रूप से सार्वजनिक सूचना के रूप में कार्य करती है। यह आमतौर पर व्यक्ति द्वारा आवश्यक सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करने के बाद प्रकाशित की जाती है, लेकिन सिविल न्यायालय का आदेश कानून की अदालत द्वारा पारित एक औपचारिक आदेश है, जो किसी व्यक्ति के नाम परिवर्तन के बारे में घोषणा करता है। राजपत्र अधिसूचना सरकार द्वारा जारी की जाती है जबकि सिविल न्यायालय का आदेश न्यायिक प्राधिकरण द्वारा पारित किया जाता है।
ऐसे में यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि एक राजपत्र अधिसूचना सिविल न्यायालय के आदेश की जगह नहीं ले सकती है। बता दें कि मामले के अनुसार रिट याची मोहम्मद समीर राव, शाहनवाज के नाम से वर्ष 2013 और 2015 में बोर्ड द्वारा आयोजित हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा में शामिल हुए और उत्तीर्ण हुए। उनके पास शाहनवाज के नाम से जारी सभी पहचान पत्र थे।
वर्ष 2020 में याची ने कुछ नए जारी आधार कार्ड और पैन कार्ड और भारत के राजपत्र में प्रकाशित एक राजपत्र अधिसूचना के आधार पर हाईस्कूल और इंटरमीडिएट प्रमाण पत्र में अपना नया नाम 'मोहम्मद समीर राव' शामिल करने और नया प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए बोर्ड से संपर्क किया। हालांकि उक्त आवेदक को बोर्ड के क्षेत्रीय सचिव ने खारिज कर दिया। संबंधित अधिकारी ने यूपी इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम, 1921 के अध्याय III के विनियमन 7 के अनुसार मामले को समय बाधित माना।
उक्त प्रावधान के अनुसार 3 साल की अवधि के बाद नाम परिवर्तन के अनुरोध पर विचार नहीं किया जा सकता है। उक्त आदेश को याची ने एकल न्यायाधीश के समक्ष चुनौती दी, जिसे संबंधित न्यायाधीश द्वारा रद्द कर दिया गया, जिसके खिलाफ राज्य सरकार ने वर्तमान अपील दाखिल की है। अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि संबंधित न्यायाधीश ने नीतिगत मामलों में न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्ति का अतिक्रमण कर राज्य सरकार को निर्देश देकर विधायी कार्यों का भी अतिक्रमण किया है।
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