Moradabad : इबादत का मुकद्दस महीना रमजान मुबारक आज से, रमजान में कुरआन सुनना और सुनाना अफजल

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Published By Bhawna
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रोजेदार के मुंह की बू मुश्क से भी ज्यादा उम्दा, रमजान में कुरआन सुनना और सुनाना अफजल

मुकद्दस रमजान इस्लामिक कैलेंडर ,

रईस शेख,अमृत विचार। मुकद्दस रमजान इस्लामिक कैलेंडर में साल का नवां महीना है। इसी महीने में अल्लाह का कलाम कुरआन ए पाक नाजिल हुआ। अल्लाह तआला ने इसी महीने में शब ए कद्र जैसी बाबरकत रात अता फरमाई। पैगम्बर ए इस्लाम हजरत मुहम्मद सल. इस महीने का इंतजार किया करते थे। रोजा मुसलमान मर्द और औरत पर फर्ज है, इसको जान-बूझकर छोड़ना गुनाह ए अजीम तो है ही कजा की अदायगी करना भी लाजिम है। रोजा इस्लाम के चार सुतूनों में एक है। रोजे में किसी तरह की लापरवाही बरतने की सख्त मनाही है। यही वजह है कि इस्लाम में रोजेदार का एहतराम करने की भी ताकीद की गई है।

पैगम्बरे इस्लाम हजरत मुहम्मद सल. ने रोजे का बहुत सवाब बताया है। रोजेदार का अल्लाह के नजदीक बड़ा मर्तबा है। जिस शख्स ने अपने रब की रजामंदी के लिए रोजे रखे उसके अगले पिछले गुनाह बख्श दिए जाएंगे। रोजेदार के मुंह की बू अल्लाह के जदीक मुश्क से ज्यादा उम्दा और पसंद है। अल्लहतआला फरमाता है के रोजा खास मेरे लिए है इसका अजर मैं खुद दूंगा।

उलामा ए मुफस्सरीन ने लिखा है कि इस्लाम के शुरूआती दौर में रोजेदार के लिए खाना, पीना और मुनाफा, इशा की नमाज पढ़ने और सोने से ये चीजें मना करार पाती थीं। इस महीने सदका ए फितर एवं जकात देना हर उस शख्स पर वाजिब करार दिया गया है जिसके पास जरूरियात ए खाना के अलावा साढ़े सात तौले सोना या उसके वजन के बराबर अशरफियां व जेवरात हों या साढ़े 52 तौले चांदी या उसकी मालियत के बराबर माल ए तिजारत हो। इस माल का चालीसवां हिस्सा जकात देना वाजिब है। इसी तरह सदका ए फितर अपनी व अपनी औलाद की तरफ से वाजिब रखा गया है। इसके लिए एक किलो 633 ग्राम गेहूं या तीन किलो 266 ग्राम जौ या उसकी कीमत का फितरा फीकस अदा करना होगा।

इसी महीने कुरआन उतारा गया
उलमा ए दीन फरमाते हैं कि इसी महीने मुसलमानों पर कुरआन उतारा गया। जिसके सुनने और सुनाने में बड़ा सवाब है। यही वो मुकद्दस महीना है जिसमें शैतान को कैद, जहन्नुम के दरवाजे बंद और जन्नत के खोल दिए जाते हैं। रोजा रखना हर बालिग मुसलमान मर्द व औरत पर फर्ज है। ये महीना बड़ी रहमत, बरकत और अजमत वाला है। रोजे में नीयत जरूरी है और दिल के इरादे को नीसत कहते है। बगैर नीयत के अगर दिनभर कुछ नहीं खाया- पिया तो रोजा नहीं होगा। जुबान से नीयत करना जरूरी नहीं, लेकिन मुस्तहिब ये है कि सहरी खाकर नीयत कर ली जाए। इसी तरह इफ्तार की नीयत भी कर ली जाए।

माह-ए-रमजान में कुरआन पढ़ना अफजल
रमजान के महीने में इशा के फर्ज व सुन्नत नमाज के बाद बीस रकअत नमाज तरावीह बजमाअत पढ़ना सुन्न्त ए मोअक्कदा है। मुकद्दस रमजान के महीने में कुरआन शरीफ पढ़ना अफजल है। इस महीने को बरकतांे का महीना भी कहा जाता है। मुसलमान इस महीने अपने रब की इबादत करें। इस महीने की गई इबादत से इंसान के अगले पिछले गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। रोजा, इंसानी जिंदगी में आई बीमारिंयों को धो डालता है।

रोजेदार का सीधा ताल्लुक अल्लाह से
फरमाया नबी ए करीम सल. ने- रोजे के अलावा और जितनी भी इबादतें व अम्लियात हैं सब की अल्लाह तक पहुंच मुकर्रर फरिश्तों द्वारा दर्ज कराए गए नामा ए आमाल के जरिए होती है। जबकि रोजेदार का सीधा तआल्लुक अल्लाह से होता है। खुदावंद करीम रोजेदार की इबादत फरिश्तों के जरिए न करके सीधे तौर से कबूल करता है। इसी लिए रोजेदार का एहतराम करने की ताकीद की गई है। इस महीने नफिल नमाजों का सवाब भी फर्ज नमाज के बराबर है। शहर इमाम सैयद मासूम अली आजाद फरमाते हैं कि मुकद्दस रमजान में मुसलमान गैर इस्लामी कामों से दूर रहें।

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