पीलीभीत: जेल में सीख रहे आत्मनिर्भरता के हुनर, बंदियों की मेहनत ला रही रंग 

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Published By Preeti Kohli
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पीलीभीत, अमृत विचार। वो भले ही सलाखों के पीछे कैद हों, लेकिन उनके हुनर की उड़ान अभी बाकी है। क्योंकि दुनिया में रहना है, तो आत्मनिर्भर बनना बाकी है। जिला कारागार में बंद 25 से अधिक महिला और पुरुष बंदी महिलाएं सिलाई और जारदोजी कर खुद को आत्मनिर्भर बना रहे हैं। पुरुष बंदी बैग तैयार कर रहे हैं। इन बैग में मां पूर्णागिरि के प्रसाद से लेकर शहर की दुकानों पर बिकने वाली साड़ियां रखी जा रही हैं। जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा हैं। जेल प्रशासन की मानें तो सभी को प्रशिक्षण दिया गया था, जिससे वह अपने आपको आत्मनिर्भर बना रहे हैं।

वर्तमान में जिला कारागार में 602 से अधिक कैदी -बंदी हैं। बंदियों को जुर्म की दुनिया से बाहर निकालने के लिए पहल शुरु की गई। जेल प्रशासन की ओर से एक साल पहले सूट की सिलाई और कढ़ाई के साथ बैग बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। यह प्रशिक्षण छह माह तक चला। इसके बाद जेल में ही जरदोजी के लिए सामान और थैलों के लिए बैग बनाने को तीन सिलाई मशीनें भी खरीदी गई।

कच्चा माल मुहैया कराया गया। करीब 15 से अधिक महिलाएं और पुरुष थैले तैयार कर रहे हैं। ये काम काफी अच्छा चल रहा है। जिन महिला और पुरुष बंदियों ने रुचि दिखाई, उन्हीं को जेल प्रशासन ने मदद की। बताते हैं कि शुरुआत में बाजार में ऑर्डर नहीं मिल रहे थे, लेकिन थैले की क्वालिटी अच्छी होने के चलते बाजार से तेजी से ऑर्डर मिलने लगे। जेल में वर्तमान समय में एक साड़ी शोरुम और मां पूर्णागिरि धाम में मिलने वाले प्रसाद के थैले के ऑर्डर लगे हुए हैं।

इसके अलावा12 महिला और पुरुष जरदोजी का काम कर रहे हैं। बाजार में बिकने वाले सूट पर कढ़ाई की जा रही है। इसमें आउटलाइन कढ़ाई, व्हाइटवर्क कढ़ाई, चिकनकारी कढ़ाई, कांथा कढ़ाई, फुलकारी कढ़ाई, ज़रदोज़ी, और जलकदोज़ी की जा रही है। जेल में अब बाजार से सूट पर कढ़ाई कराने के लिए ऑर्डर लग रहे हैं। बंदियों के द्वारा जितना काम किया जा रहा है। उसका परिश्रमिक बंदियों के खाते में जमा हो रहा है। अब बंदियों का परिश्रमिक भी बढ़ा दिया है। उद्देश्य यही है कि प्रशिक्षण के बाद बंदी जेल से रिहा होने पर खुद का रोजगार कर सकेंगे।

जल्द शुरु होगा अचार बनाने का प्रशिक्षण
जिला कारागार में अभी तक एलईडी बल्व, जरदोंजी और थैले बनाने का काम शुरू किया जा चुका है। जिससे बंदी आत्मनिर्भर बन रहे हैं, लेकिन अब जेल प्रशासन की ओर से बंदियों को अचार बनाने का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। इसके लिए अचार बनाने वाली संस्था से वार्ता चल रही है। जिसका प्रशिक्षण जेल में जल्द शुरू कराया जाएगा। जेल में तैयार किया गया अचार बाजार में बिकवाने को लेकर भी संपर्क साधा जा रहा है।

बंदियों को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दिया जा रहा है। एलईडी बल्व के अलावा जरदोजी और थैले बनाने का प्रशिक्षण दिलाया गया था। करीब 25 से अधिक बंदी थैले और कढ़ाई का काम कर रहे हैं। जिससे उनका परिश्रमिक बन रहा है। ऑर्डर बाजार से लगातार मिल रहा है। इस प्रशिक्षण के बाद जब बंदी जेल से रिहा होंगे, तो वह समाज में अपना जीवन यापन करने के लिए काम कर सकेंगे। आगे और भी अन्य प्रशिक्षण कराने पर विचार चल रहा है- राजेश पांडेय, जेल अधीक्षक

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