बरेली: नए वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची आला हजरत की जमात रजा-ए-मुस्तफा 

Amrit Vichar Network
Published By Preeti Kohli
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बरेली, अमृत विचार: वक्फ के नए कानून को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने का सिलसिला जारी है। राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संगठनों की ओर से सुप्रीमकोर्ट में लगभग दर्जन भर याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं।

आला हजरत की जमात रजा-ए-मुस्तफा भी इस फेहरिस्त में शामिल हो गई है। जमात के उपाध्यक्ष सलमान हसन खान के हवाले से जारी एक बयान में नए वक्फ कानन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही गई है।

दरगाह ताजुश्शरिया के सज्जादानशीन और काजी-ए-हिंदुस्तान मुफ्ती असजद रजा खान कादरी (असजद मियां) की सरपरस्ती में संगठन ने सुप्रीमकोर्ट का रुख किया है।

सलमान हसन ख़ान ने कहा कि जनहित याचिका में वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने, संपत्तियों के संरक्षण के लिए अधिकारियों को व्यापाक अधिकार देने और वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसलों को सीमित करने जैसे प्रावधानों पर आपत्ति जताई गई है।

सुप्रीमकार्ट के चार वरिष्ठ अधिवक्ताओं के पैनल-जिसमें एडवोकेट रंजन कुमार दुबे, एडवोकेट प्रिया पुरी, एडवोकेट तौसीफ खान और एडवोकेट मुहम्मद ताहा शामिल हैं-जमात की तरफ से पैरवी करेंगे।

जमात के मुताबिक, वक्फ का नया कानून भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 25 (धार्मिक स्वतंत्रता), और 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है। 

काजी-ए-हिंदुस्तान और सज्जादानशीन मुफ्ती असजद रजा खान कादरी, संसद से बिल पारित होने के दौरान अपना विरोध दर्ज करा चुके हैं। उन्होंने इसे इस्लामी विरासत पर हमला करार दिया था।

उनका मानना है कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना और संपत्तियों की नई जांच, संविधान के अनुच्छेद 26 का खुला उल्लंघन है, जो धार्मिक समुदायों को अपने मामले खुद संभालने का अधिकार देता है।

उन्होंने कहा कि इस बिल को मुस्लिम वक्फ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने और उन्हें माफिया के हवाले करने की साजिश बताया।

जमात के उपाध्यक्ष ने कहा कि वक्फ़ संपत्तियां मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सामाजिक विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं। यह संशोधन न केवल मुस्लिम समुदाय के मौलिक अधिकारों पर आघात करता है,

बल्कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ाकर धार्मिक स्वायत्तता को कमजोर करता है। हमारा मानना है कि यह कानून संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है।

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