High Court : एक साल में दो डिग्रियां प्राप्त करने वाले अभ्यर्थी सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति के हकदार नहीं
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फर्जी डिग्री से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान जामिया उर्दू, अलीगढ़ उचित कक्षाओं के बिना डिग्रियां वितरित कर रहा है तथा ऐसे डिग्री धारकों को उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक (उर्दू भाषा) के रूप में नियुक्ति का कोई अधिकार नहीं दिया गया है।
कोर्ट ने माना कि याची ने 5 महीने की छोटी अवधि में दो परीक्षाएं, इंटरमीडिएट और अदीब-ए-कामिल, पास की थीं, जो उचित नहीं है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि जामिया उर्दू अवैध रूप से डिग्री वितरित कर रहा था,इसलिए याची को सहायक शिक्षक (उर्दू) के पद के लिए अयोग्य माना गया। उक्त आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने अजहर अली की याचिका सहित सभी संबंधित मामले भी खारिज करते हुए पारित किया।
याचियों सहित संबंधित मामलों में तर्क दिया गया कि उन्होंने जामिया उर्दू, अलीगढ़ से अदीब-ए-कामिल में डिग्री प्राप्त की थी और वे यूपी बेसिक शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक (उर्दू भाषा) के रूप में नियुक्त होने के योग्य थे। सभी याची यूपी शिक्षक पात्रता परीक्षा - 2013 में उपस्थित हुए और उसमें सफल हुए। याचियों का दावा है कि वे परीक्षा परिणामों के अनुसार तैयार की गई मेरिट सूची में शामिल थे,जब वे अपनी पोस्टिंग का इंतज़ार कर रहे थे। इस बीच याचियों द्वारा अदीब-ए-कामिल कोर्स एक साल से भी कम समय में पास करने के बारे में जांच की गई, जबकि कोर्स की अवधि 1 वर्ष थी। यह भी पाया गया कि कुछ याचियों ने उसी वर्ष डिग्री प्राप्त की थी, जिस वर्ष उन्होंने अपनी इंटरमीडिएट परीक्षा दी थी। परिणामस्वरूप जिन याचियों को पहले ही नियुक्ति मिल चुकी थी, उनकी नियुक्तियाँ रद्द कर दी गईं। याचियों ने हाईकोर्ट के समक्ष इस आधार पर याचिका दाखिल की कि जामिया उर्दू, अलीगढ़ एक मान्यता प्राप्त संस्थान है और यह तथ्य निराधार है कि वहाँ कोई शिक्षक या कक्षाएँ नहीं हैं। हालांकि विपक्षियों के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि जामिया उर्दू, अलीगढ़ में नियमित कक्षाएं नहीं लगतीं, बल्कि डिग्रियाँ वितरित की जाती हैं और याचिकाकर्ताओं ने धोखाधड़ी करके डिग्रियाँ प्राप्त की हैं।
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