इमाम हुसैन ने जुल्म के सामने नहीं झुकने दिया इस्लाम का सर : कल्बे जवाद

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Published By Virendra Pandey
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लखनऊ, अमृत विचार। मोहर्रम की दूसरी तारीख को इमामबाड़ों में हजरत इमाम हुसैन के किरदार पर रोशनी डाली गई। पैगम्बर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन ने जुल्म के सामने इस्लाम का सर झुकने नहीं दिया। अपना भरा घर लुटा दिया, लेकिन आतंकी मिजाज यजीद के साथ समझौता नहीं किया।

इमामबाड़ा गुफरानमआब में मौलाना कल्बे जवाद ने कहा कि सच्चा आलिम बड़ी से बड़ी ताक़त के सामने भी सर नहीं झुकाता। आयतुल्लाह सैय्यद अली खामेनेई ने सुपर पावर को ठुकरा दिया और आत्मसमर्पण की जगह मुकाबला करने को तरजीह दी। उन्होंने साबित किया कि हुसैनी सिर्फ खुदा के सामने सर झुकाते हैं। विक्टोरिया स्ट्रीट स्थित मदरसा नाजमिया में मौलाना हमीदुल हसन ने कहा कि सूरा-ए-फातिहा से सिर्फ वही लोग एतराज करते हैं जिन्हें आखिरत पर भरोसा नहीं होता। उन्होंने कहा कि जो लोग दुनिया से चले गए हैं उन्हें सवाब पहुंचाने का सिर्फ सूरा-ए-फातिहा ही वसीला है।

इमामबाड़ा तकी साहब में मौलाना सैफ अब्बास ने विलायत की जरूरत और अहलेबैत की महानता पर अपनी मजलिस को खिताब किया। हजरत अली के पिता हज़रत अबू तालिब की अजमत उनके ईमान और महानता पर भी उन्होंने चर्चा की। इमामबाड़ा आगा बाकर में मौलाना मीसम जैदी ने कहा कि मजलिसें मजलूमों का गम मनाने के लिए हैं। मौसम चाहे जैसा हो लेकिन हमारे गम पर वो असर नहीं डाल पाता है। कर्बला में तो ऐसी गर्मी थी कि जैसे आग बरस रही हो, उसमें भी हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों को भूखा-प्यासा शहीद कर दिया गया। छह महीने के अली असगर की प्यास पर भी दुश्मन को रहम नहीं आया।

सआदत अली खां के मकबरे में मौलाना मुराद रजा ने कहा कि सआदत अली खां के मकबरे में मौलाना मुराद रजा ने कहा कि अल्लाह ने इंसान को आजाद पैदा किया। आजादी इंसान के लिए सबसे अहम है। उन्होंने कहा कि कर्बला हमें गुलामी से आजादी की तरफ ले जाने का पैगाम देती है। छोटे इमामबाड़े में मौलाना मोहम्मद मियां आब्दी ने कहा कि हमें कर्बला का मकसद समझने के लिए विलायत को अपना केन्द्र बनाना होगा। कर्बला का हर किरदार चाहे वह हजरत अब्बास की वफादारी हो या हजरत अली अकबर की कुर्बानी सब विलायत की इताअत का अक्स हैं।

इमामबाड़ा नाजिम साहब में मर्सिये की मजलिस

इदारा-ए-तहफ्फुज-ए-मर्सियाख्वानी की ओर से इमामबाड़ा नाजिम साहब में मर्सियाख्वानी की दूसरी मजलिस में मोहसिन अब्बास ने मीर अनीस का मर्सिया पेश किया। मोहसिन अब्बास ने सुनाया :- नार से नूर की जानिब उसे लाई तकदीर, अभी ज़र्रा था अभी हो गया खुर्शीद-ए-मुनीर, शाफ़ि-ए-हश्र ने ख़ुश हो के बहल की तकसीर, तकिया ज़ानू-ए-शब्बीर मिला वक़्त-ए-आखिर। औज-ओ-इक़बाल-ओ-हशम फ़ौज-ए-ख़ुदा में पाया।। जब हुआ ख़ाक तो घर ख़ाक-ए-शिफ़ा में पाया।

कर्बला दियानतुद्दौला में निकला काफिला-ए-हुसैनी

हजरत इमाम हुसैन का कारवां दो मोहर्रम को कर्बला पहुंचा था। इसी की याद में शनिवार को कर्बला दियानतुद्दौला में इदारा-ए-सक्का-ए-सकीना ने जुलूसे आमद-ए-काफिले हुसैनी का मंजर पेश किया। काफिले की आमद से ठीक पहले मौलाना कल्बे जवाद ने मजलिस को खिताब किया। मजलिस खत्म होने के साथ ही कर्बला परिसर में काफिले की आमद हुई। सबसे आगे ऊंट पर सवार शख्स मुनादी करता दिखाई दिया। ऊंटों पर अमारियां, जुलजुनाह, अलम, हजरत अली असगर का झूला, काली, हरी झंडियां लिए बच्चे जुलूस की शक्ल में पहुंचे तो काफिले का अंदाज देखकर लोग रो पड़े।

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