प्रयागराज : सीआरपीसी के प्रावधानों को दरकिनार कर बीएनएसएस के प्रावधान पूर्वव्यापी रूप से लागू

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Published By Vinay Shukla
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प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका स्वीकार करते हुए ऐसे मामलों में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438(6) के तहत लगे प्रतिबंध को हटा दिया। सीआरपीसी की धारा 438 के तहत गैरकानूनी गतिविधियां(रोकथाम) अधिनियम,1967, स्वापक औषधि और मन: प्रभावी पदार्थ अधिनियम,1985, शासकीय गोपनीयता अधिनियम,1923, उत्तर प्रदेश गुंडागर्दी एवं सामाजिक क्रियाकलाप (रोकथाम) अधिनियम, 1986 तथा मृत्युदंड प्राप्त आरोपियों के मामलों में अग्रिम जमानत याचिका स्वीकार्य नहीं है।

कोर्ट ने वर्तमान मामले पर विचार करते हुए माना कि बीएनएसएस के प्रावधान राज्य संशोधन प्रतिबंधों को दरकिनार करते हुए उपरोक्त मामलों में अग्रिम जमानत पर रोक नहीं लगाते, बल्कि पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होते हैं। उक्त आदेश न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह की एकलपीठ ने 78 वर्षीय अब्दुल हमीद की दूसरी अग्रिम जमानत याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। मामले के अनुसार 13 अगस्त 2011 को गिरधरपुरा गांव में गोलीबारी की घटना के कारण कई लोगों के खिलाफ पुलिस स्टेशन देवरनिया, बरेली में आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई। याची के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया, क्योंकि गवाहों के बयानों के अनुसार वह घटनास्थल पर मौजूद नहीं था, लेकिन सूचनाकर्ता के बयान बदलने के बाद ट्रायल कोर्ट ने 2019 में सीआरपीसी की धारा 319 के तहत याची को तलब किया, जिसे चुनौती देते हुए याची ने डिस्चार्ज और अग्रिम जमानत के लिए याचिका दाखिल की, जिसे खारिज कर दिया गया।

1 जुलाई 2024 को नया कानून लागू होने के बाद याची ने बीएनएसएस की धारा 482 के तहत दूसरी अग्रिम जमानत याचिका दाखिल की, जिसमें तर्क दिया गया कि नया कानून अग्रिम जमानत याचिका पर रोक नहीं लगता है और एक नए कानूनी ढांचे का उदाहरण प्रस्तुत करता है। कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 438 (6) के निरस्त होने और किसी बचत खंड की अनुपस्थिति को देखते हुए बीएनएसएस की धारा 482 के तहत दाखिल दूसरी अग्रिम जमानत याचिका को विचारणीय माना। कोर्ट के समक्ष प्रश्न था कि क्या बीएनएसएस की धारा 482 पूर्वव्यापी रूप से लागू हो सकती है? इस प्रश्न पर विचार करते हुए कोर्ट ने पाया कि यह प्रावधान नए अपराध नहीं बनाता, दंड निर्धारित नहीं करता, यह पक्षकारों के मौलिक अधिकारों में कोई परिवर्तन नहीं करता बल्कि अग्रिम जमानत प्राप्त करने के लिए प्रक्रियात्मक तंत्र प्रदान करता है।

धारा 482 पूर्व व्यापी रूप से लागू होगी, जब तक कि कोई अन्य समानांतर वैधानिक योजना स्पष्ट ना हो। कोर्ट ने स्वीकार किया कि सीआरपीसी की धारा 438(6) के तहत वैधानिक बाधा को हटाना कानूनी ढांचे में एक मौलिक बदलाव है। अंत में कोर्ट ने याची की  वृद्धावस्था तथा चिकित्सीय स्थिति और कार्यवाही में पर्याप्त देरी के मद्देनजर बीएनएसएस द्वारा शुरू किए गए अधिक उदार प्रावधानों का लाभ पाने का हकदार माना और उसकी अग्रिम जमानत याचिका स्वीकार कर ली।

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