अनधिकृत लेनदेन में ग्राहक की देयता साबित करना बैंक की ज़िम्मेदारी: हाईकोर्ट
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेनदेन से जुड़े एक मुद्दे पर महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए स्पष्ट किया कि परिपत्र के खंड 12 के अनुसार अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग के मामले में ग्राहक की देयता साबित करने का भार बैंक पर है। यह निर्णय न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की खंडपीठ ने सुरेश चंद्र सिंह नेगी व अन्य की याचिका खारिज करते हुए दिया।
बता दें कि याचिका में पिता और पुत्र ने गबन का आरोप लगाते हुए बैंक ऑफ बड़ौदा और भारतीय रिजर्व बैंक को 37.85 लाख रुपए की राशि की वापसी का निर्देश देने की मांग की थी। कोर्ट ने पाया कि संबंधित लेनदेन याचियों के खाते से ही उनकी जानकारी में किए गए थे, और यह साइबर धोखाधड़ी का मामला नहीं था। याचियों ने बैंक को दो दिन बाद सूचित किया, जिससे उनकी कहानी पर संदेह उत्पन्न होता है।
कोर्ट ने 6 जून 2017 के आरबीआई के "ग्राहक संरक्षण - अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेनदेन में ग्राहकों की देयता सीमित करना" शीर्षक से परिपत्र का हवाला देते हुए कहा कि यदि ग्राहक किसी भी अनधिकृत लेनदेन के बारे में तीन कार्यदिवसों के भीतर बैंक को सूचित करता है, तो उसकी देयता शून्य हो जाती है, साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि अनधिकृतता साबित करने की जिम्मेदारी बैंक की होती है।
बैंक ने अपने जवाबी हलफनामे में लाभार्थी की जानकारी, आईपी एड्रेस, पासवर्ड बदलाव और समय विवरण जैसे तकनीकी साक्ष्य प्रस्तुत किए। तदनुसार कोर्ट ने माना कि धन का कोई गबन नहीं हुआ था और याचियों को अपने खातों में प्रत्येक लेनदेन की जानकारी थी। आरबीआई का परिपत्र ग्राहक सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं को शामिल करता है, जिसमें अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन के विशिष्ट परिदृश्यों में उत्पन्न होने वाले जोखिमों, ज़िम्मेदारियों और ग्राहक देयता के बारे में ग्राहकों में जागरूकता उत्पन्न करने की व्यवस्था भी शामिल है।
इस परिपत्र का उद्देश्य ग्राहकों के लिए धोखाधड़ी वाले लेनदेन से सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करना है, न कि व्यक्तिगत लेनदेन की आड़ में तलवार के रूप में। अंत में मामले में खातों की हैकिंग या धोखाधड़ी सिद्ध न होकर ग्राहकों की ओर से बरती गई लापरवाही को देखते हुए कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
