हाईकोर्ट ने दी दो प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने की अनुमति

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Published By Pawan Singh Kunwar
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नैनीताल, अमृत विचार: हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र एवं न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ ने जिला पंचायत सदस्य के प्रत्याशी का नामांकन पत्र रिटर्निंग अधिकारी द्वारा निरस्त करने के मामले पर सुनवाई करते हुए चुनाव में प्रतिभाग करने की अनुमति दे दी है। 

मामले के अनुसार, डीडीहाट से जिपं सदस्य का चुनाव नरेंद्र सिंह देवपा लड़ना चाह रहे थे। नामांकन की तिथि को उनके द्वारा नामांकन फार्म भरा गया लेकिन रिटर्निंग अधिकारी द्वारा उनका नामांकन इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि उन्होंने पूर्व के आपराधिक मामलों का जिक्र फॉर्म में नहीं किया है, उस कॉलम को नहीं भरा। याचिका में कहा गया कि नामांकन पत्र का जो प्रारूप राज्य निवार्चन आयोग की तरफ से बनाया गया, वह राज्य  पंचायतीराज नियमावली की धारा 9 के विरुद्ध है जबकि वे आपराधिक केसों में पहले ही बरी हो चुके हैं। उस कॉलम को भरना जरूरी नहीं था। वर्तमान में राज्य चुनाव आयोग ने एक्ट को दरकिनार कर उनका नामांकन पत्र निरस्त कर दिया। 


 इस मामले को उनके द्वारा पहले एकलपीठ में चुनौती दी गयी। एकलपीठ ने उसे निरस्त कर दिया। जिसके बाद उनके द्वारा मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में एकलपीठ के आदेश को चुनौती दी गयी। खंडपीठ ने एक्ट के विरुद्ध जाकर नामांकन पत्र को निरस्त करने के आदेश पर रोक लगाते हुए आयोग से पूछा कि क्या चुनाव के सिंबल (चुनाव प्रतीक चिन्ह) जारी हो गए हैं? जिस पर आयोग की तरफ से कहा गया कि नामांकन पत्रों की स्क्रूटनी हो चुकी है। जिनका फॉर्म सही नहीं था उसे एक्ट के विरुद्ध मानकर रिटर्निंग अधिकारी ने निरस्त कर दिया और बैलेट पत्र छपने के लिए प्रेस में भेज दिए गए हैं। इस पर खंडपीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इलेक्शन हुआ नहीं है, प्रोसेस में है। न्यायालय में पीड़ितों की याचिकाएं विचाराधीन हैं लेकिन सिंबल आवंटन से पहले कैसे बैलेट पेपर की प्रिंटिंग की जा सकती है? कौन उम्मीदवार किस सिंबल पर चुनाव लड़ना चाहता है, उसकी पसंद का ख्याल नहीं रखा गया।

यहां ग्राम प्रधान प्रत्याशी को मिली राहत
नैनीताल: दूसरी सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने ग्राम प्रधान पद की प्रत्याशी का नामांकन पत्र निरस्त करने पर रोक लगाते हुए उन्हें चुनाव में प्रतिभाग करने की अनुमति दी है। मामले के अनुसार, ग्राम सभा फिरोजपुर मानपुर काशीपुर निवासी नेहा गौतम का नामांकन पत्र इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि उनकी माता वन विभाग की भूमि पर अतिक्रमणकारी हैं और नेहा का अपनी माता के घर आना-जाना रहता है। नामांकन निरस्तीकरण की प्रक्रिया को नेहा गौतम ने उच्च न्यायालय में चुनौती  देते हुए कहा कि वे विवाहित हैं और अपनी ससुराल में निवास करती हैं। उनकी माता को वन विभाग द्वारा अतिक्रमण का कोई नोटिस नहीं दिया गया है और न ही उनके खिलाफ कोई कार्यवाही आज तक की गई है। उनका नामांकन गलत तरीके से निरस्त किया गया है। मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने मामले को सुनने के बाद याचिकाकर्ता को राहत देते हुए चुनाव में प्रतिभाग करने की अनुमति दे दी।

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