Rakshabandhan 2025: पैसों की खनक और दिखावे की दुनिया में प्रेम की मूल भावना को खो रहा है रक्षाबंधन
लखनऊ। भाई बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक रक्षाबंधन का त्योहार पैसों की चमक, दिखावे और भौतिक वस्तुओं के लेन देन में प्रेम की मूल भावना को खोता नजर आ रहा है। एक समय था, जब बहन भाई की कलाई पर सिर्फ एक कच्चे धागे की डोर बांध कर उसकी लंबी उम्र एवं अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती थी और भाई बहन की रक्षा करने की कसम लेता था।
बदलते समय के साथ इस पर्व में बहुत कुछ बदलाव आ चुका है और हर त्योहार की तरह इसमें भी भौतिकता पूरी तरह से हावी हो चुकी है। जानकारों के अनुसार 90 के दशक के बाद भारतीय त्योहारों पर भी अर्थ युग और पाश्चात्य संस्कृति हावी होने लगी थी जो आज पूरे शवाब पर है। सूत की एक डोरी से बांधने की परंपरा की जगह मंहगी म्यूजिकल राखियां बच्चों और बड़ों दोनों को आकर्षित कर रही हैं।
धनाठ्य वर्ग में बहने राखी के रूप में सोने-चांदी की चेन, ब्रेसलेट्स कलाई पर बांधकर बदले में भाई से मंहगी घड़ियां, इलेक्ट्रानिक गैजेट्स, ज्वेलरी, इलेक्ट्रॉनिक नोटबुक से लेकर लैपटॉपए मोबाइल तथा ऐसे ही दूसरे तोहफों की एडवांस डिमांड रख रही हैं। इसी होड़ के चलते रक्षाबंधन व्यवसायीकरण और स्टेटस आफ सिंबल बन गया है।
सही मायनों में कहा जाये तो आज के परिवेश में रक्षाबंधन पर्व का आधुनिकीकरण हो गया है। कुछ बहनें अपने ऐश्वर्य को प्रदर्शित करने का प्रयास करती हैं। वे सोने-चांदी के ब्रासलेट कलाई पर बांधकर मंहगे उपहार लेती हैं। इस तरह भाई-बहन के पवित्र प्रेम के पर्व का व्यवसायीकरण भी होता जा रहा है। इस त्यौहार को बिना दिखावे के अपनी यथाशक्ति प्रेम पूर्वक मनाना चाहिए। भाई-बहन दोनो को एक.दूसरे की आवश्यकता में साथ देना ही इस पर्व का मुख्य उद्देश्य है।
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