प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकारी पैनल में अधिवक्ताओं की नियुक्ति व्यवस्था पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि यहाँ एक तरह की “हकदारी संस्कृति” व्याप्त हो चुकी है, जिसके चलते केवल प्रभावशाली परिवारों के वंशजों को ही अवसर मिलते हैं और पहली पीढ़ी के मेहनती वकिलों को अनदेखा किया जाता है। यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकलपीठ ने जुबेदा बेगम एवं अन्य की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया।
कोर्ट ने बताया कि मामला उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (यूपीएसआरटीसी) के एक पूर्व चालक के परिवार से जुड़ा था, जिसमें निगम के अधिवक्ता की पेशेवर लापरवाही का आरोप लगाया गया था। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि राजनीतिक या पारिवारिक प्रभाव के बिना काम करने वाले युवा और पहली पीढ़ी के सक्षम वकीलों को भी निगमों का प्रतिनिधित्व करने का न्यायसंगत मौका मिलना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि वर्तमान नियुक्ति प्रथाओं से विधि-शासन कमजोर होता है और बार के समक्ष नई प्रतिभाओं को योगदान देने से रोका जा रहा है। इस प्रवृत्ति से न केवल वकीलों के हक़ हनन होते हैं बल्कि न्याय व्यवस्था पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। इसलिए न्यायालय ने निगमों में अधिवक्ताओं की नियुक्ति में पारदर्शिता और पेशेवर योग्यता की कड़ी जांच सुनिश्चित करने पर ज़ोर दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपीएसआरटीसी के प्रबंध निदेशक को निर्देश दिया है कि वे बोर्ड की बैठक बुलाकर नियुक्ति प्रक्रिया पर नई, पारदर्शी नीति बनाएँ — जिसमें योग्यता, अनुभव तथा पहली पीढ़ी के वकीलों को अवसर देने का प्राविधान स्पष्ट हो। कोर्ट ने यह योजना अगली सुनवाई (22 सितंबर) तक प्रस्तुत करने का आदेश दिया है। न्यायालय ने यह भी संकेत दिया कि यदि नियुक्तियों में पारदर्शिता नहीं लाई गई और ऐसी ही ‘हकदारी’ बनी रही तो आगे सख्त निर्देश और कार्रवाई संभावित है, ताकि निगमों के कानूनी प्रतिनिधित्व में निष्पक्षता पुनः स्थापित हो सके।
इस आदेश का स्वागत बार के कुछ वरिष्ठ वकीलों ने किया है। उनका कहना है कि अगर नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी बनेगी तो पहली पीढ़ी के कई सक्षम वकीलों को अवसर मिलेंगे और विधि-शासन की मजबूती होगी। वहीं अन्य विशेषज्ञों ने भी कहा कि कंपनियों व निगमों द्वारा पेशेवरता के आधार पर अधिवक्ता चुनने से सार्वजनिक हितों का बेहतर संरक्षण होगा।
बैठक/आगे की कार्रवाई: यूपीएसआरटीसी को निर्देशित किया गया है कि वह बोर्ड स्तर पर एक नीति मसौदा बनाकर उच्च न्यायालय में 22 सितंबर को पेश करे; तब अदालत आगे की कार्रवाई निर्देश तय करेगी।
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